एक बार टूटे तो फिर जुड़ती नहीं और मेहनत से कमाया गया धन ही सच्ची खुशी देता है। [संगीत] गर्मी बहुत लंबी खींच गई थी। सूरज जैसे आग उगलता था। खेत सूख चुके थे। तालाब की तलहटी अब दरारों से भरी हुई थी। गांव के लोग आसमान को हर सुबह देखते थे। उम्मीद करते थे कि आज बारिश होगी। लेकिन हर दिन वही नीला आसमान वही तेज सूरज। रामू अपने पुराने कपड़ों में सुबह-सुबह भैंसों को चारा देने निकला।
नंगे पांव जमीन पर चलते हुए उसे महसूस हुआ मिट्टी अब जल रही है। उसके पैरों में चुभन सी होती थी। वो रुक कर एक बार तालाब की ओर देखता फिर भैंसों को पकड़ कर लौट आता। मां तो कहती है बारिश जल्दी आएगी। पर यह जल्दी कब आएगी?
रामू की मां सविता सुबह से आंगन में झाड़ू लगा रही थी। उनकी साड़ी का पल्लू पसीने से भीग चुका था। माथे पर चिंता की लकीरें थी। वो अक्सर दोपहर को खेत की मेड़ पर बैठकर आसमान देखा करती थी। लेकिन अब वो भी थक चुकी थी। रामू भैंस को तालाब तक मत ले जाना। वहां कीचड़ तो है नहीं। अब सिर्फ गर्मी है।
मां क्या कल बारिश होगी? पता नहीं बेटा भगवान जाने। रामू के दादू जो अब ज्यादा नहीं बोलते थे। तुलसी के पास बैठे रहते थे। उनके सामने एक पीतल की छोटी कटोरी में जल और एक दिया रखा रहता था। सुबह शाम वो तुलसी को जल देते। फिर माला फेरते हुए आसमान की ओर निहारते रहते। हां जब मैं छोटा था बेटा तब ऐसी गर्मी नहीं होती थी। जून आते ही मेघा आ जाते थे। अब तो जैसे बादल भी रूट से गए हैं। गांव के लोग बहुत परेशान थे।
कुएं सूख चुके थे। तालाब अब बस दरारों का ढेर बन चुका था। कोई पूजा करवा रहा था। कोई पंडित से मिल रहा था। महिलाएं व्रत कर रही थी। बच्चे बेचैन थे लेकिन बादल बस दूर से झांक कर चले जाते थे। एक दिन गांव के सबसे बूढ़े किसान विष्णु चाचा ने सबको इकट्ठा किया। गांव की चौपाल में एक नीम का पेड़ था।
उसी के नीचे सब बैठे। सुना है? अगर गांव के सारे लोग एक साथ खेत में इकट्ठा होकर काम करें और प्रार्थना करें तो बारिश जल्दी आ जाती है। मैं तो कहता हूं चलो कोशिश करते हैं। चलो। अगले दिन पूरा गांव एक साथ खेत में उतरा। हर हाथ में कोई ना कोई औजार था। सविता भी आई। रामू भी खुर्ती लेकर आया। दादू तुलसी के पास बैठकर माला फेरते रहे। गांव की औरतें गीत गाने लगी।