अब जैसे ही आएंगे तो मैं खुद लेकर आ जाऊंगा ना। इतना चिंता मत करो। हां मैं आ जाऊंगा। कुछ दिन और बीते। अब रघु को शक होने लगा। एक दिन उसने गांव के बुजुर्ग माधव काका से सलाह ली। अरे काका मोहन ने मेरी फसल ली और अब पैसे नहीं दे रहा है। क्या करूं मैं? अरे बेटा जब कोई बात कागज पर नहीं होती है ना तो ऐसे ही धोखा होता है। चल ठीक है। तू इतना चिंता मत कर। गांव की पंचायत से बात कर। अगले दिन गांव की पंचायत बैठी। सरपंच माधव काका और कुछ और बुजुर्ग मौजूद थे। मोहन रघु का कहना है कि तूने उसकी फसल ली और पैसे नहीं दिए। बता क्या यह सच है?
सरपंच जी मैंने फसल ली जरूर लेकिन वो खराब हो गई। व्यापारी ने मना कर दिया। अब नुकसान हो गया तो मैं क्या करूं?
क्या? तो तुमने फसल का नुकसान भी मुझ पर डाल दिया। अरे भैया फसल लेते समय तुमने तो कहा था कि पूरा पैसा मिलेगा। अरे भैया व्यापार में नुकसान फायदा होता रहता है। मैं कोई गारंटी थोड़ी दे सकता था कि पैसे मिलेंगे ही मिलेंगे। मोहन की बातों से साफ था कि वो झूठ बोल रहा है।
लेकिन कागजी सबूत ना होने की वजह से पंचायत कुछ तय नहीं कर पा रही थी। तभी माधव काका बोले सरपंच जी एक बात है अगर मोहन सच्चा है तो क्या वो भगवान के मंदिर में खड़ा होकर भी यही बात कहेगा बताइए। क्यों नहीं मैं मैं तैयार हूं। अगले दिन पूरा गांव मंदिर में इकट्ठा हुआ। मोहन जैसे ही मंदिर में भगवान की मूर्ति के सामने खड़ा हुआ, उसके हाथ कांपने लगे। हे भगवान, मुझे माफ करना।
मैंने लालच में आकर रघु को धोखा दिया। मैं मेरी नियत गलत थी। आ तो तूने कबूल कर ही लिया? हां, सुन लो सब लोग। हां रघु मैंने तेरी फसल बेच दी और खुद पैसे रख लिए। मुझे लगा कोई नहीं पकड़ेगा। लेकिन अब शर्म आ रही है। गांव के सभी लोग स्तब्ध रह गए। मोहन की सच्चाई सामने आ गई थी।
सरपंच ने निर्णय सुनाया। मोहन तूने विश्वासघात किया है। तुझे फसल की पूरी कीमत चुकानी होगी। साथ ही गांव की भलाई के लिए अगले 3 महीने तक बिना पैसे के काम करना होगा। ठीक है। मैं अपनी गलती मानता हूं और सजा स्वीकार करता हूं। है। रघु ने पैसे तो वापस पा लिए लेकिन उसके मन पर जो चोट लगी थी वो जल्दी नहीं भरी। कुछ महीने बाद मोहन ने सच में सुधर कर काम करना शुरू किया।
अब वो मेहनत से कमाने में विश्वास करने लगा। रघु भाई तूने मुझे माफ कर दिया। यह मेरा सौभाग्य है। मैं अब सही रास्ते पर चलूंगा। अरे मोहन भाई, सुधर जाना ही सबसे बड़ी बात है। भगवान सब देखता है। नैतिक शिक्षा धोखा चाहे जितना भी चालाकी से दिया जाए अंत में सच सामने आता ही है। विश्वास की डोर बहुत कीमती होती है।