बच्चे कीचड़ में खेलते हुए बादलों की ओर इशारा करते जैसे उन्हें बुला रहे हों। रामू ने आकाश की ओर देखा। एक छोटी सी सफेद बादल की रेखा दूर दिखाई दी। रामू खुश होकर मां मां देखो। बादल हा मां लेकिन कुछ नहीं हुआ। बादल आया और फिर चला गया। सब थक गए। दिन ढल गया। खेत फिर सोना हो गया। लोग लौटे लेकिन मन में एक और हार की छाया थी। रात को रामू चुपचाप अपने दादू के पास बैठा। दादू अगर हम सब ने मिलकर मेहनत की फिर भी बारिश नहीं आई तो क्या होगा?
बेटा मेहनत का फल कभी भी खाली नहीं जाता। बारिश नहीं आई तो देर से आएगी पर आएगी जरूर। तू बस दिल छोटा मत कर। है ना?
तीन दिन बीत गए। फिर चौथे दिन सुबह फिर चौथे दिन सुबह कुछ अलग था। हवा में हल्की ठंडक थी। पेड़ हिलने लगे थे। पक्षी चुप थे। सविता ने पहली बार सुबह चाय बनाते हुए मुस्कुराकर कहा, रामू लगता है आज कुछ होने वाला है। तुलसी भी हरी हो गई है रातोंरात। दोपहर होते बादल सच में छा गए।
काले मोटे भारी बादल जैसे कोई बड़ी चादर आसमान पर बिछा दी गई हो। बिजली चमकी फिर गड़गड़ाहट हुई। फिर पहली बूंद गिरी रामू के गाल पर रामू रोते हुए मां मां मां पानी गिरा। सविता चौंक कर बाहर आती है। हे भगवान तू सुनता है। गांव की गलियां भरने लगी। बच्चे बाहर निकल आए। खेतों में नाचने लगे। रामू ने अपनी छोटी सी नाव निकाली।
वही नाव जो उसने महीनों पहले बना कर रखी थी बारिश के इंतजार में। हां दादू। देखो देखो देखो। मेरी नाव तैर रही है। देखो। और देखना बेटा अब फसल भी तैरेगी हमारे सपनों की तरह। बारिश तीन दिन लगातार हुई। तालाब भर गया। कुएं गहराने लगे। खेतों की मिट्टी अब नरम थी। हल्की राह देख रही थी। गांव में रौनक लौट आई थी। हर तरफ हरी घास उगाई थी। पानी की नालियां बहने लगी। रामू अपने दादू के साथ खेत में गया। उसने पहली बार हल पकड़ा।
हां, अब तू बड़ा हो गया है रामू। यह खेत तेरा है और यह आसमान भी। हां, ये ले। और ये बारिश यह हमारी मेहनत की बूंद है दादू। रामू मुस्कुराते हुए गांव में अब हर चेहरे पर मुस्कान थी। बच्चे नाव चला रहे थे और किसान बीज बो रहे थे। महिलाएं गीत गा रही थी और बूढ़े तुलसी को जल दे रहे थे। बारिश में सिर्फ जमीन नहीं भरी थी। उसने दिल भी भर दिए थे। उम्मीद, रिश्ते और आस्था फिर से लौट आई थी। नैतिक संदेश जब दिल से मेहनत करो तो प्रकृति भी साथ देती है। पहली बारिश बस पानी नहीं लाती। वो उम्मीद, आस्था और रिश्तों की मिठास भी साथ लाती है।