मैं अभी अपने पति के साथ शादी की तस्वीरें लेने के बाद ही आई थी कि जब वह मॉडलों की तस्वीरें देख रहे थे

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Part 4 – गोदाम का जाल

part 4

ज़िंदगी जैसे-तैसे संभल रही थी,
लेकिन अर्जुन ने पीछा करना नहीं छोड़ा।
उसकी कॉल्स और धमकियाँ अब और खतरनाक हो गई थीं।

एक रात, अचानक मेरा फ़ोन बजा।
लाइन के उस पार एक अजनबी आवाज़ थी,
कर्राती, धीमी लेकिन डराने वाली –

“अगर तुम चाहती हो कि रवि सुरक्षित रहे,
तो आज रात 9 बजे ठाणे के पुराने गोदाम में आ जाओ।
वरना पछताओगी।”

मेरे हाथ से फ़ोन लगभग गिर गया।
मुझे साफ़ समझ आ गया –
यह अर्जुन ही है।

मैं जानती थी यह एक जाल है,
लेकिन उस धमकी ने मेरे पैरों से ज़मीन खींच ली।
मैं भागकर रवि को बताने से बचना चाहती थी,
लेकिन उसके सामने सच्चाई छिपाना मुमकिन नहीं था।

उसकी आँखों में गुस्से और चिंता का मिला-जुला भाव था।
उसने मेरा हाथ कसकर पकड़ा और कहा:

“हम दोनों साथ चलेंगे।
अब उसे तुम्हारी ज़िंदगी पर राज़ नहीं करने दूँगा।”

रात का अँधेरा शहर पर छा चुका था।
हम दोनों ठाणे पहुँचे।
गोदाम के टूटे दरवाज़े से अंदर जाते ही
साँसें घुटने लगीं।
पीली, टिमटिमाती बल्ब की रोशनी में
अर्जुन खड़ा था –
उसके पीछे चार-पाँच डरावने आदमी,
बाँहों पर टैटू, आँखों में शिकारी चमक।

अर्जुन ने ताली बजाई और व्यंग्य से हँसा:
“आख़िरकार आ ही गईं।
अब देखोगी… अर्जुन को छोड़ने का अंजाम क्या होता है।”

हवा भारी हो चुकी थी।
मेरे पैर काँप रहे थे,
लेकिन रवि ने धीरे से मेरे हाथ पर दबाव डाला।
वह पास झुककर फुसफुसाया:
“डरो मत। मैं हूँ न।”

उसकी आवाज़ में एक ऐसी दृढ़ता थी
जिसने मुझे हिम्मत दी।

अर्जुन ने पास आकर ज़हर भरे शब्द उगले:
“तुम सोचती हो कि मुझे अपमानित कर सकती हो?
मेरी शादी तोड़ सकती हो और फिर
इस घटिया फोटोग्राफर के साथ घूम सकती हो?
अब कोई भी तुम्हें बचा नहीं पाएगा।”

रवि एक कदम आगे बढ़ा।
उसकी आवाज़ कड़क थी:
“बस, अर्जुन!
वह अब तुम्हारी नहीं है।
उसकी ज़िंदगी से हमेशा के लिए दूर हो जाओ।”

दोनों आमने-सामने खड़े थे।
तनाव इतना गहरा था कि हवा में बिजली-सी गूँज रही थी।

तभी अचानक बाहर से सायरन की आवाज़ आई।
“पुलिस!”

दरवाज़ा तोड़ते हुए कई पुलिसकर्मी अंदर घुसे।
कुछ ही पलों में अर्जुन और उसके गुंडों को पकड़कर हथकड़ियाँ लगा दी गईं।

मैं स्तब्ध थी।
मेरे दिल में सवाल था –
यह सब इतनी जल्दी कैसे हुआ?

रवि ने धीरे से मेरी तरफ देखा।
उसकी आँखों में रहस्य और सुकून था।
फिर धीरे से बोला:
“कभी-कभी सही समय पर मदद माँगना ही सबसे बड़ी हिम्मत होती है।”

अर्जुन की गिरफ्तारी ने मेरी ज़िंदगी का सबसे काला अध्याय ख़त्म कर दिया।
उसकी ठंडी आँखें, उसकी धमकियाँ,
अब सिर्फ़ एक बुरे सपने की तरह रह गईं।

गोदाम की उस रात ने मुझे सिखा दिया –
सच्चाई चाहे देर से सामने आए,
लेकिन जीतती हमेशा वही है।

और जब मैंने रवि का हाथ थामा,
तो पहली बार महसूस हुआ:
अब मुझे भागना नहीं है।
मेरे साथ कोई है…
जो हर अँधेरे का सामना करने के लिए तैयार है।

Ankit Verma

अंकित वर्मा एक रचनात्मक और जिज्ञासु कंटेंट क्रिएटर हैं। पिछले 3 वर्षों से वे डिजिटल मीडिया से जुड़े हैं और Tophub.in पर बतौर लेखक अपनी खास पहचान बना चुके हैं। लाइफस्टाइल, टेक और एंटरटेनमेंट जैसे विषयों में विशेष रुचि रखते हैं।

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