Part 5 – जब अँधेरा लौटता है

अर्जुन की गिरफ्तारी के बाद सबको लगा कि मेरी ज़िंदगी अब आसान हो जाएगी।
लोगों ने सोचा कि मेरे ऊपर से खतरा टल चुका है और अब मैं चैन से जी सकूँगी।
लेकिन असलियत कहीं ज़्यादा कठिन थी।
हर रात, मैं अचानक बुरे सपनों से चौंककर उठ जाती थी।
कभी गोदाम का अँधेरा, कभी अर्जुन की ठंडी आँखें,
कभी उसका फुसफुसाना –
“तुम्हें इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी…”
मेरे कानों में गूँज जाता।
दिन में मैं लोगों के सामने सामान्य दिखने की कोशिश करती,
लेकिन अंदर ही अंदर डर अब भी मेरी नसों में ज़हर की तरह दौड़ता था।
गॉसिप और समाज की बातें
मुंबई जैसे बड़े शहर में भी ख़बरें जंगल की आग की तरह फैलती हैं।
मेरे शादी टूटने की कहानी हर किसी की ज़ुबान पर थी।
रिश्तेदार फुसफुसाते:
— “अरे, लड़की में ही कोई कमी रही होगी।”
— “इतना अच्छा दूल्हा छोड़ दिया, वो भी शादी से ठीक पहले!”
पड़ोसी पीछे से ताने कसते:
— “अब इसे कौन अपनाएगा?”
उनकी बातें मेरे कानों में तीर की तरह चुभतीं।
मैं लाख समझाऊँ कि अर्जुन कैसा इंसान था,
लेकिन इस समाज के लिए औरत की गलती ही सबसे पहले दिखती है।
अर्जुन की परछाइयाँ
हालाँकि पुलिस ने अर्जुन को जेल भेज दिया था,
लेकिन डर अब भी पीछा नहीं छोड़ रहा था।
कभी लगता कोई मुझे गली में देख रहा है।
कभी सुनाई देता जैसे कोई मेरे पीछे-पीछे आ रहा है।
कभी दरवाज़े पर दस्तक होती, और जब खोलती तो कोई नहीं।
एक रात तो मेरे घर के दरवाज़े पर लाल रंग से “गद्दार” लिख दिया गया।
डाकबॉक्स में एक जंग लगा चाकू पड़ा मिला।
मैं काँप गई।
क्या अर्जुन के लोग अब भी बाहर घूम रहे थे?
रवि – मेरा सहारा
इन सब हालातों में अगर कोई मज़बूती से मेरे साथ खड़ा था,
तो वो रवि था।
वो मुझे काम पर छोड़ने आता,
रात में हालचाल पूछता,
और मेरी आँखों में डर देख लेता तो कहता:
“डरो मत… जब तक मैं हूँ, कोई तुम्हें छू भी नहीं सकता।”
उसके शब्द मेरे लिए ढाल बन गए।
लेकिन धीरे-धीरे मुझे यह भी महसूस होने लगा
कि उसकी चिंता मेरे लिए सिर्फ़ सहानुभूति नहीं थी।
पहली मुलाक़ात – समाज के सामने
एक दिन, मैं और रवि मरीन ड्राइव के किनारे बैठे थे।
समुद्र की लहरें किनारे से टकरा रही थीं,
लेकिन हमारे बीच खामोशी थी।
अचानक अर्जुन सामने आ गया।
सफ़ेद शर्ट पहने,
चेहरे पर मुस्कान…
लेकिन आँखों में ज़हर।
वो मेरी तरफ बढ़ा और बोला:
“तो यही है? तुमने मुझे छोड़ दिया,
इस फ़ोटोग्राफ़र के लिए?”
मेरा दिल धड़क उठा।
मैं खड़ी हुई और सख़्ती से कहा:
“हमारे बीच सब खत्म हो गया है, अर्जुन। अब मुझे अकेला छोड़ दो।”
लेकिन वह ठहाका मारकर हँसा:
“ख़त्म?
मेरे लिए यह खेल अभी शुरू हुआ है।”
वह झुककर फुसफुसाया:
“अगर तुम मेरी नहीं हो सकती, तो किसी की भी नहीं होगी।”
रवि तुरंत बीच में आ गया,
उसकी आवाज़ तलवार जैसी थी:
“बस, अर्जुन। अब उसका पीछा छोड़ दो।”
दोनों आमने-सामने खड़े थे।
तनाव इतना गहरा था कि मुझे लगा अभी सब फट पड़ेगा।
लेकिन अर्जुन पीछे हट गया,
और जाते-जाते ज़हर उगला:
“तुम दोनों को इस फैसले का पछतावा होगा।”
रवि का इज़हार
उस दिन के बाद रवि और भी ज़्यादा मेरे साथ रहने लगा।
वो ताले बदलवाता,
अपार्टमेंट की सुरक्षा देखता,
और मेरी हर छोटी-बड़ी ज़रूरत का ख्याल रखता।
एक शाम, पूरे इलाके की बिजली चली गई।
मैं डर के मारे अँधेरे में दुबकी हुई थी।
तभी दरवाज़ा खुला और रवि हाथ में टॉर्च लेकर आया।
पीली रोशनी में उसका चेहरा चमक रहा था।
वो मेरे पास आया और फुसफुसाया:
“मुझे लगता था कि अपनी बहन को खोने के बाद,
मैं फिर कभी किसी पर भरोसा नहीं कर पाऊँगा।
लेकिन तुम्हारे साथ…
मुझे फिर से जीने की वजह मिल रही है।”
मेरी आँखों से आँसू बह निकले।
उस रात, पहली बार मैंने महसूस किया—
अर्जुन की परछाइयों के बीच,
एक नई रोशनी मेरे सामने खड़ी थी।