लेकिन एक रात आई, एक बाढ़ आई और नदियां ने रास्ता बदल लिया। दो गांव बन गए हरिहरपुर और देवली। अब कोई नहीं जाता उस पार। बस किस्से आते हैं इधर से उधर। तो चाचा क्या उधर वाले लोग हमसे अलग हैं?
अरे नहीं रे मुन्ना।
लोग तो वही हैं। बस दिल से थोड़े दूर हो गए हैं।रघु चाचा की बातें चंपा के दिल में घर कर गई। उसी दिन उसने ठान लिया। मैं जाऊंगी नदिया के उस पार। अगली सुबह चंपा ने अपनी मां से बात की। अम्मा कमला काकी बुला रही है उधर। बहुत दिन से कह रही है कि उनके घर चलूं। अब मैं जाना चाहती हूं।
हाय दैया तू अकेले कैसे जाएगी और वो भी नाव से। वहां के लोग जाने कौन हैं।अम्मा वो लोग हमारे ही जैसे हैं। और फिर कमला काकी तो अपनी ही है। एक बार जाने दो ना। बस तीन दिन की बात है। काफी मिन्नतों के बाद मां ने इजाजत दे दी। और फिर एक सुबह चंपा ने अपनी छोटी सी पोटली बांधी और चल पड़ी नदियां के उस पार।
नाव धीरे-धीरे नदी के सीने को चीरती चली जा रही थी। पानी में सूरज की परछाई, हवा में आम के पत्तों की खुशबू और चंपा के दिल में कुछ अजीब सा धड़कता हुआ। उधर किनारे पर कमला काकी इंतजार कर रही थी। आ गई मेरी बेटियां। अरे तुझे तो देखकर लग रहा है जैसे नदी भी मुस्कुरा रही हो। देवली गांव हरिहरपुर से थोड़ा अलग था।
वहां लोग थोड़े खामोश थे। मगर उनकी आंखों में कहानी थी। खेत थोड़े लंबे थे। मगर पगडंडियां उतनी ही जानदार। कमला काकी का घर छोटा मगर सजीला था। चंपा ने वहीं रहना शुरू किया। वहीं पास में रहता था राजा। एक 20 साल का लड़का जो दिखने में सामान्य था। लेकिन उसकी आंखों में सुकून था। तुम हरिहरपुर से आई हो?
हां, मैं चंपा। मैं राजा।