लेकिन सच कहूं तो यहां कोई कुछ नहीं करता। सब अपने-अपने में खोए रहते हैं। तो चलो कुछ नया करते हैं। दोनों की दोस्ती धीरे-धीरे बढ़ने लगी। चंपा ने देखा कि राजा के पास गहरी बातें करने का हुनर है। राजा ने देखा कि चंपा में सब कुछ बदल देने की आग है। तीन दिन बीत गए। अब चंपा को लौटना था मगर उसका मन नहीं भरा।
अरे बिटिया अभी तो तेरा मन भी नहीं भरा। कुछ दिन और रुक जा। काकी मैं लौटूंगी लेकिन वापस जरूर आऊंगी। यहां कुछ अधूरा रह गया है। चंपा लौट आई। मगर अब वो हर रोज नदी के किनारे जाकर बैठती। उसे लगता जैसे कोई उसे बुला रहा है नदी के उस पार से। और फिर एक दिन राजा आया हरिहरपुर नाव से अकेले। मैं आया हूं चंपा।
अबकी बार तुम्हें लेने नहीं साथ चलने आया हूं। हम दोनों कुछ नया शुरू करेंगे। दोनों गांव को फिर से जोड़ेंगे। क्या कहती हो? क्या ये इतना आसान होगा?नहीं। मगर अगर तू साथ है तो सब मुमकिन है। बोल। और फिर शुरू हुआ एक नया अध्याय।
चंपा और राजा ने मिलकर एक योजना बनाई दोनों गांव को जोड़ने की। एक छोटी पुलिया, एक साझा चौपाल और दोनों गांव के बच्चों के लिए एक साथ का स्कूल। रघु चाचा ने पहली ईंट रखी। कमला काकी ने पहली देसी मिठाई बांटी। पुल बना और पहली बार दोनों गांव के लोग आमने-सामने आए। अरे उधर के बिल्लू भी मेरे जैसे दिखते हैं। बिल्कुल क्योंकि इंसानियत बांटने से नहीं जोड़ने से बढ़ती है। अब चंपा और राजा दोनों गांव में एक साथ पहचाने जाते थे। लोगों ने कहा नदिया के उस पार अब कोई पराया नहीं।