बनारस की व्यस्त गलियों से दूर एक शांत लेकिन रहस्यमई गांव विशालपुर में नेहा नाम की एक युवती कुछ महीनों के लिए पहुंची थी। नेहा बनारस में एक छोटी सी किताबों की दुकान चलाती थी। जहां वह किताबों की दुनिया में खोई रहती। लेकिन उसकी नानी जो 5 साल पहले इस दुनिया से विदा हो चुकी थी का पुराना घर गांव में खाली पड़ा था।
नेहा ने सोचा कि क्यों ना यहां कुछ समय बिताया जाए जहां हवा में शांति की खुशबू हो और रातें सितारों से भरी हो। घर पुराना था। लकड़ी के दरवाजे जो रात में चरमराते दीवारें जो पुराने राज छिपाए हुए लगती। नेहा को अकेलापन पसंद था। वो एक आधुनिक सोच वाली लड़की थी जो पुराने अंधविश्वासों पर हंसकर उन्हें नकार देती।
गांव के लोग उसे शहर की लड़की कहते लेकिन नेहा को इससे फर्क नहीं पड़ता। वह यहां किताबें पढ़ने और गांव की सादगी का आनंद लेने आई थी। लेकिन किसे पता था कि यह यात्रा एक अंधेरे रहस्य की शुरुआत बन जाएगी। विशालपुर गांव हराभरा था। चारों ओर घने जंगल और खेत फैले हुए और बीच में एक बड़ा तालाब जो गांव की जीवन रेखा था।
यहां की औरतें रोज तालाब पर कपड़े धोने जाती जहां हंसी ठोली के बीच दिन गुजरता। नेहा जल्दी ही गांव की कुछ युवतियों से दोस्ती कर ली। वे सब मिलकर तालाब जाते जहां पानी की लहरें हल्की-हल्की सरसराहट पैदा करती। एक दोपहर जब सूरज की किरणें तालाब के पानी पर चमक रही थी और हवा में एक अजीब सी नमी महसूस हो रही थी।
नेहा अपनी सहेलियों के साथ वहां पहुंची। सहेलियां कपड़े धोने में लग गई। पानी में छपाक-छपाक की आवाजें गूंज रही थी। नेहा भी अपने कपड़ों को पानी में डुबो रही थी। लेकिन उसका ध्यान आसपास की झाड़ियों पर था। जहां से एक हल्की सी हलचल महसूस हो रही थी।
मानो कोई छिपा हुआ जीव उन्हें देख रहा हो। अचानक झाड़ियों से एक सरसराहट हुई जो धीरे-धीरे तेज हो गई। सबकी नजरें उस ओर मुड़ी। एक बड़ा सा काला सांप चमकदार त्वचा वाला जीभ फटकारते हुए तालाब के किनारे रेंगता हुआ आ रहा था। उसकी आंखें पीली चमक रही थी। मानो वे किसी गहरे रहस्य की गहराई से निकली हो।
सहेलियां डर से सहर उठी। एक दूसरे से चिपक गई। उनकी सांसे तेज हो गई। लेकिन नेहा नहीं घबराई। वह शहर की लड़की थी जहां खतरे रोज की बात थे। उसने सोचा कि यह बस एक सांप है जिसे आसानी से भगाया जा सकता है। जमीन से एक तेज पत्थर उठाकर उसने जोर से सांप की ओर फेंका। पत्थर सीधा उसके सिर पर लगा। सांप तड़पा।