सूरजपुर एक छोटा सा शहर जहां पुरानी गलियों में समय मानो रुक सा गया था। बरगद के पेड़ों की छांव, हवेलियों की जजर दीवारें और बच्चों की हंसी इस शहर को एक खास रंग देती थी। इन्हीं तंग गलियों में बसी थी एक छोटी सी दुकान किशन टेलरिंग हाउस। इस दुकान का मालिक 60 वर्षीय किशन एक ऐसा टेलर था जिसके हाथों में सुई धागे का जादू था। उसके सिले सूट और सलवार कमीज की फिटिंग की तारीफ हर कोई करता।
लेकिन पिछले 5 सालों में उसकी दुकान की चर्चा कुछ और ही वजह से होने लगी थी। मोहल्ले की लड़कियां फुसफुसाहट में कहती थी कि किशन नाप लेने के बहाने उनके साथ असहज व्यवहार करता है। उसकी नजरें कपड़ों को नहीं बल्कि कुछ और भेदती थी और उसका इंच टेप जरूरत से ज्यादा देर तक रुकता था।
फिर भी डर और सामाजिक दबाव की वजह से कोई खुलकर शिकायत करने की हिम्मत नहीं जुटा पाया था। किशन की दुकान बाहर से साधारण थी। पुराना लकड़ी का काउंटर, दीवारों पर टंगे रंग बिरंगे कपड़े और एक खटारा सिलाई मशीन जो दिन रात चलती रहती। किशन का चेहरा भी साधारण था।
झुर्रियों से भरा सफेद बाल और एक चालाक मुस्कान जो उसकी असलियत को छिपाती थी। वह ग्राहकों से मधुरता से बात करता। लेकिन उसकी आंखों में छिपी लालच को समझने में वक्त लगता। मोहल्ले की औरतें और लड़कियां उसकी दुकान पर आती क्योंकि उसकी सिलाई का हुनर बेमिसाल था।
लेकिन हर बार उनके मन में एक अनजाना डर रहता। कुछ ने उसकी हरकतों को नजरअंदाज किया तो कुछ ने अपनी सहेलियों को चुपके से सावधान किया। लेकिन अब समय बदलने वाला था। एक गर्मी की तपती दोपहर में नीलम नाम की एक युवती किशन की दुकान पर आई। नीलम कोई साधारण लड़की नहीं थी। वो एक कॉलेज स्टूडेंट थी जिसके दिल में अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने का जुनून था।
उसके हाथ में एक गहरे नीले रंग का सूट था जिसे वह सिलवाना चाहती थी। किशन ने उसे अपनी वही चालाक मुस्कान दी और नाप लेने के लिए अंदर के छोटे से कमरे में बुलाया। कमरा दंग था जिसमें एक पुराना पंखा धीरे-धीरे घूम रहा था और हवा में गर्मी की उमस भरी थी। किशन ने इंच टेप उठाया और नाप लेना शुरू किया। लेकिन जल्द ही उसकी हरकतें शुरू हो गई। उसका हाथ नीलम की कमर पर जरूरत से ज्यादा देर रुका। और उसकी उंगलियां अनुचित तरीके से उसकी त्वचा को छूने लगी। नीलम का चेहरा गुस्से और असहजता से लाल हो गया।