शांति नगर एक छोटा सा गांव जो पहाड़ों की गोद में बसा था। अपनी शांति और सादगी के लिए जाना जाता था। यहां के लोग अपने छोटे-छोटे मकानों में सुखी जीवन बिताते थे। खेतों में काम करते थे और शाम को एक दूसरे के साथ बैठकर हंसीज़ाक करते थे। प्रकृति की सुंदरता यहां के हर कोने में फैली हुई थी।
पहाड़ों से गिरते झरने, हरियाली से भरे खेत और ठंडी हवा जो हर दिल को सुकून देती थी। लेकिन यह शांति ज्यादा दिन तक नहीं रही। पिछले कुछ महीनों से एक बंदर ने गांव में आतंक मचा रखा था।
यह बंदर जो किसी तरह गांव में आ गया था। अपने शरारती और अपराधिक कारनामों से सबको परेशान कर रहा था। कभी वह किसी के घर में घुसकर खाना चुरा लेता तो कभी दुकानों से फल और सब्जियां ले उड़ता। पर सबसे बड़ी परेशानी तब होती जब वह लोगों के पैसे चुरा लेता। गांव वाले उसे चालू बंदर के नाम से पुकारते थे।
क्योंकि वह इतना चतुर था कि कोई भी उसे हाथ नहीं लगा पाता था। कई बार लोगों ने उसे पकड़ने की कोशिश की। कोई लट्ठी लेकर उसके पीछे दौड़ा तो कोई जाल बिछाकर उसे फंसाने की सोची। लेकिन हर बार वह हाथों से फिसल कर निकल जाता। एक दिन गांव में एक बद्धा उत्सव होने वाला था।
रमेश और पारू की शादी का माहौल पूरा गांव में फैला हुआ था। रमेश गांव के सरपंच का बेटा था। एक नेक दिल और मेहनती युवक जिसकी सुंदरता और समझदारी के चर्चे गांव भर में थे। पारो एक गरीब परिवार की लड़की थी। लेकिन उसकी मासूम आंखें और दिलकश मुस्कान हर किसी को अपना दीवाना बना देती थी।
शादी के दिन गांव के बीच एक सुंदर मंडप सजाया गया। फूलों की मालाओं से मंडप चमक रहा था। लोग नाच रहे थे, गा रहे थे और ढोल की आवाज से पूरा गांव झूम उठा था। पंडित जी ने विवाह के मंत्र पढ़े। रमेश और पारो ने सात फेरे लिए और एक दूसरे को वरमाला पहनाई। हर चेहरा खुशी से चमक रहा था। लेकिन किसी को यह अंदाजा नहीं था कि यह सुहाना दिन एक भयानक रात में बदल जाएगा। रात के वक्त जब रमेश और पारो अपने नए जीवन की शुरुआत करने अपने कमरे में गए। सुहाग रात का एक अलग ही समा था।