जो सिर्फ लूट और हवस के लिए लड़ते थे। उसने अपने सैनिकों को हुक्म दिया कि वे महाराज विक्रमादित्य की सेना को रौंद डालें और जुलेखा को वापस लाकर उसके सामने पेश करें। रुकनाबाद की सीमा पर दोनों सेनाओं का आमनासामना हुआ। यह युद्ध 4 महीने तक चला। दोनों पक्षों के सैनिकों ने अपनी जान की बाजी लगा दी। जुल्फरार की सेना क्रूर थी।
मगर महाराज विक्रमादित्य की सेना में अनुशासन एकता और उनके प्रति अपार श्रद्धा थी। महाराज स्वयं युद्ध के मैदान में उतरे। उनकी तलवार की चमक शत्रुओं के लिए काल बनकर आई। उन्होंने अपने सैनिकों को प्रेरित किया और हर कदम पर उनका हौसला बढ़ाया। जुल्फरार भी युद्ध के मैदान में एक राक्षस की तरह लड़ा।
उसकी तलवार से खून की नदियां बही। मगर उसकी क्रूरता और हवस ने उसकी सेना का मनोबल तोड़ दिया था। उसके सैनिक सिर्फ डर के मारे लड़ रहे थे। जबकि महाराज विक्रमादित्य के सैनिक अपने धर्मनिष्ठ राजा के लिए जान देने को तैयार थे। 4 महीने बाद एक निर्णायक युद्ध में महाराज विक्रमादित्य ने जुल्फरार को आमने-सामने की लड़ाई में परास्त किया।
उनकी तलवार के एक ही प्रहार से जुल्फरार धराशाई हो गया। जुल्फरार की मृत्यु के साथ ही रुकनाबाद में एक नया सवेरा उदित हुआ। महाराज विक्रमादित्य ने न केवल जुल्फरार को समाप्त किया बल्कि उसके महल में कैद हजारों रानियों और दासियों को भी मुक्ति दिलाई। महाराज विक्रमादित्य ने जुल्फरार की चार बेगमों जुलेखा, मीरा, रीना और झाला को रुकनाबाद की सत्ता सौंपी।
उन्होंने उन्हें सुल्तान का तोहफा दिया और कहा कि वे इस धरती को फिर से समृद्ध और खुशहाल बनाएं। चारों बेगमों ने मिलकर रुकनाबाद का शासन संभाला। उन्होंने जुल्फरार के अत्याचारों के निशान मिटाए और जनता को न्याय और सुरक्षा प्रदान की। रुकनाबाद फिर से हराभरा होका उठा। नदियां फिर से गाने लगी और खेतों में फसलें लहलहाने लगी। रुकनाबाद की जनता ने महाराज विक्रमादित्य का हृदय से आभार व्यक्त किया। वे उन्हें अपना उद्धारक मानते थे।
महाराज ने रुकनाबाद को छोड़कर उज्जैन लौटने से पहले चारों बेगमों को आशीर्वाद दिया और कहा, न्याय और करुणा से शासन करो। यही सच्ची सत्ता का आधार है। इस तरह सुल्तान ए रुकनाबाद की कहानी जो कभी जुल्फरार के आतंक से कांपती थी, अब चार बेगमों के शासन में एक नई रोशनी की ओर बढ़ चली। महाराज विक्रमादित्य की धर्मनिष्ठा, करुणा और अपराजय शौर्य ने ना केवल एक क्रूर शासक का अंत किया बल्कि हजारों मासूमों को नया जीवन भी दिया। रुकनाबाद अब आजाद था और उसकी हवा में फिर से स्वतंत्रता की सुगंध थी।