सुल्तानत रुकनाबाद एक ऐसी धरती जो कभी फूलों की सुगंध और नदियों की कलकल से गूंजती थी। अब एक भयावह अंधेरे में डूब चुकी थी। इस सुल्तानत का बादशाह था जुल्फरार। एक ऐसा शासक जिसका नाम सुनकर ही प्रजा के दिल कांप उठते थे।
उसका चेहरा राक्षसों सा भयानक था। मगर उसकी क्रूरता और हवस उसकी शक्ल से भी कहीं अधिक डरावनी थी। उसकी आंखों में जलती थी एक ऐसी आग जो मासूमियत को भस्म कर देती थी। उसकी सत्ता का आधार था उसका खौफ, उसकी सेना और उसकी अनियंत्रित हवस जो ना रानियों को छोड़ती थी ना दासियों को। यह कहानी उसी जुल्फरार की है। उसकी चार बेगमों की है। और उन महान महाराज विक्रमादित्य की है।
जिन्होंने अपनी धर्मनिष्ठा, करुणा और अद्वितीय शौर्य से रुकनाबाद को अत्याचारों से मुक्ति दिलाई। रुकनाबाद की सरजमी कभी समृद्धि और सौंदर्य का प्रतीक थी। मगर जब जुल्फरार ने तख्त हथिया उसने इस धरती को अपने अत्याचारों का अड्डा बना लिया। वह एक ऐसा योद्धा था जिसने दर्जनों राज्यों को अपने अधीन किया। हर युद्ध में वह अपने शत्रुओं को रौंदता और उनकी रानियों को अपनी हवस का शिकार बनाता।
वह उन्हें बंदी बनाकर अपने महल के हरम में ले जाता। जहां उनकी मासूमियत को वह अपने पैरों तले कुचल देता। उसकी हरकतें इतनी घिनौनी थी कि सुनने वालों का दिल दहल जाता। वह रानियों को अपनी हवस का शिकार बनाता। उनके साथ जबरदस्ती करता और उनकी आत्मा को इस कदर तोड़ देता कि वे जीवित रहते हुए भी मृत सी हो जाती थी।
जुल्फरार की हवस का कोई अंत ना था। रात के अंधेरे में वह अपनी बंदी रानियों को अपने कक्ष में बुलाता। वहां वह उनकी देह को नोचता। उनके सम्मान को तार-तार करता। वह उनके आंसुओं पर हंसता और उनकी चीखों को अपनी जीत का संगीत मानता।