उनकी आवाज में एक सादगी थी। राखी लीजिए भाई के लिए अच्छी राखी लीजिए। लेकिन उनका ध्यान अपने आसपास की हर हलचल पर था। कुछ देर बाद वह हवलदार दिखाई दिया। उसकी वर्दी थोड़ी मैली थी और चेहरे पर एक कठोर मुस्कान थी। वो मार्केट में इधर-उधर घूम रहा था और उसकी नजरें आने जाने वाली लड़कियों पर टिकी थी।
राधिका ने देखा कि वह कुछ लड़कियों के पास रुकता। कुछ कहता और वे डर कर उससे दूर भाग जाती। यह साफ था कि उसकी मौजूदगी लोगों के लिए परेशानी का सबब थी। फिर उसकी नजर राधिका पर पड़ी। वह धीरे-धीरे उनके पास आया। अपने हाथ में लाठी को हल्के-हल्के घुमाते हुए। हवलदार ने राधिका को ऊपर से नीचे तक देखा। जैसे कोई शिकारी अपने शिकार का आकलन करता है। उसकी आवाज में एक अजीब सा ठहराव था।
तुम यहां नहीं हो। मैंने तुम्हें पहले कभी नहीं देखा। राधिका ने सहजता से जवाब दिया, हां, मैं पहली बार यहां आई हूं। रक्षाबंधन के लिए राखियां बेचने का सोचा। हवलदार ने एक कुटिल मुस्कान दी और कहा, “अच्छा, लेकिन यहां थैला लगाने के लिए पैसे देने पड़ते हैं।
यह मेरा इलाका है और यहां मेरी मर्जी के बिना कुछ नहीं होता।” राधिका के मन में गुस्सा भड़क उठा। लेकिन उन्होंने इसे छिपाया। उन्होंने हैरानी जताते हुए कहा पैसे लेकिन यह तो सार्वजनिक जगह है। मुझे नहीं पता था कि यहां पैसे देने पड़ते हैं। हवलदार का चेहरा सख्त हो गया। उसने कहा नहीं हो इसलिए नहीं पता।
लेकिन यहां मेरी चलती है। या तो पैसे दो या थैला उठाओ और चली जाओ। राधिका ने दृढ़ता से कहा मैं पैसे नहीं दूंगी। यह गलत है। उनकी आवाज में एक अजीब सा वजन था। जैसे कोई चेतावनी छिपी हो। लेकिन हवलदार ने इसे नजरअंदाज कर दिया। हवलदार का गुस्सा अब सातवें आसमान पर था। उसने कहा, बहुत अकड़ है तुझ में।
देखता हूं तेरी अकड़ कैसे निकालता हूं। उसने अपना एक जूता निकाला और राधिका के मुंह पर दे मारा। भीड़ में एक सन्नाटा छा गया। राधिका ने खुद को संभाला और कहा, “तुम एक पुलिस वाले होकर ऐसा कर रहे हो?
यह शर्म की बात है।
उनकी बात में दोहरा मतलब था। एक तो हवलदार की हरकत पर तंज और दूसरा अपनी असली पहचान का हल्का सा इशारा। लेकिन हवलदार ने इसे समझा नहीं। उसने और गुस्से में आकर दूसरा जूता निकाला और फिर से उनके मुंह पर मारा। इस बार राधिका का सिर एक पत्थर से टकराया और वह बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़ी।
भीड़ में अफरातफरी मच गई। कुछ लोग आगे आए लेकिन हवलदार ने लाठी लहराकर उन्हें दूर भगा दिया। उसने राधिका को उठवाया और अपने साथ ले गया। यह एक ऐसा पल था जहां सब कुछ अनिश्चित लग रहा था। क्या राधिका की योजना नाकाम हो गई थी? या यह कहानी का अंत नहीं बल्कि एक नई शुरुआत थी। जब राधिका को होश आया तो वह एक जेल की कोठरी में थी। उनके सिर में तेज दर्द था और चारों तरफ अंधेरा छाया था।