तीसरे दिन रात को फिर वही आवाज़ आई। इस बार उसने हिम्मत करके कमरे से बाहर निकलने का सोचा। गलियारे में निकलते ही उसकी नज़र हवेली के एक पुराने दरवाज़े पर पड़ी। दरवाज़ा बंद था, लेकिन अंदर से जैसे किसी ने दीवार थपथपाई हो।
वह दरवाज़े के पास पहुँची। अचानक पीछे से कदमों की आहट आई। पलटकर देखा—देवर रोहित खड़ा था। उसके चेहरे पर पसीना था, और आँखों में डर।
“भाभी, यहाँ मत आना। ये हिस्सा हवेली का बहुत पुराना है। बंद है। अंदर कुछ नहीं है।”
“लेकिन अंदर से आवाज़ आई थी।”
“नहीं भाभी… वो… हवा होगी। आप सो जाइए।”
नीलिमा का शक और गहरा हो गया।
अगले दिन उसने हवेली की नौकरानी से पूछने की कोशिश की। नौकरानी पहले तो डर गई, फिर धीरे से बोली—
“बीबीजी, आप ज्यादा मत पूछो। इस घर में कुछ बातें ऐसी हैं जिन्हें जानना आपके लिए अच्छा नहीं है।”
अब नीलिमा बेचैन हो गई।
उस रात उसने तय किया—सच पता लगाना ही होगा। आधी रात को वह चुपके से उस बंद दरवाज़े तक गई। इस बार उसे साफ़ सुनाई दिया—अंदर कोई रो रहा था।