गाँव के किनारे रहता था शंकर। एक सीधा-सादा किसान। उसकी ज़िंदगी खेत, बैल और छोटी-सी बेटी गौरी के इर्द-गिर्द घूमती थी

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औरत की कहानी

उस औरत ने बताया—
“मैं इस गाँव के ठाकुर की बहू थी। शादी के बाद दहेज की माँगें पूरी न होने पर उन्होंने मुझे ज़िंदा इस कुएँ में डाल दिया। तब से मेरी आत्मा यहीं भटक रही है। जब भी कोई बच्चा पास आता है, मैं उसे बचाने की कोशिश करती हूँ… लेकिन लोग सोचते हैं मैं उसे ले जाती हूँ।”

शंकर ने काँपते हुए पूछा—
“मेरी बेटी कहाँ है?”

औरत ने आसमान की ओर इशारा किया—
“तेरी गौरी ज़िंदा है। वो कुएँ के उस पार बने सुराख़ से निकल गई। चिंता मत कर। लेकिन… मेरी आत्मा तभी मुक्त होगी जब तू मेरा सच गाँव वालों को बताएगा।”

गाँव का सच

अगली सुबह शंकर ने गाँव की चौपाल पर सबको इकट्ठा किया। लेकिन जैसे ही उसने सच्चाई बताई, लोग हँस पड़े।

“शंकर, तूने कुएँ की चुड़ैल से बातें कर लीं? ये सब तेरे वहम हैं।”

लेकिन शंकर ने हार नहीं मानी। वह सबको लेकर कुएँ में उतरा। तहखाने की जंजीरें, टूटी चूड़ियाँ और औरत के कपड़ों के चिथड़े देखकर सबकी आँखें फटी रह गईं।

गाँव के बुज़ुर्गों ने धीरे-धीरे मान लिया कि यह सच है। उनमें से एक बूढ़ा काँपती आवाज़ में बोला—
“हाँ, ये सच है… हमने देखा था ठाकुर ने अपनी बहू को मारकर कुएँ में फेंका था। लेकिन डर के मारे किसी ने आवाज़ नहीं उठाई।”

मुक्ति

गाँव ने मिलकर उस औरत की अस्थियों का अंतिम संस्कार किया। मंत्रोच्चार के साथ उसकी आत्मा को विदाई दी गई।

जैसे ही चिता जली, कुएँ से आती रोने की आवाज़ें हमेशा के लिए बंद हो गईं। हवा में एक अजीब-सी शांति फैल गई।

शंकर ने अपनी बेटी गौरी को सीने से लगाया। उसके दिल में सिर्फ़ एक संकल्प था—
“अब इस गाँव की कोई भी बेटी अन्याय की शिकार नहीं होगी। मैं सबकी रक्षा करूँगा।”

Ankit Verma

अंकित वर्मा एक रचनात्मक और जिज्ञासु कंटेंट क्रिएटर हैं। पिछले 3 वर्षों से वे डिजिटल मीडिया से जुड़े हैं और Tophub.in पर बतौर लेखक अपनी खास पहचान बना चुके हैं। लाइफस्टाइल, टेक और एंटरटेनमेंट जैसे विषयों में विशेष रुचि रखते हैं।

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