अनिता का दिल टूटता, लेकिन हिम्मत नहीं। उसने ठान लिया था कि अब चाहे कुछ भी हो जाए, वह नौकरी जरूर करेगी। उसे मालूम था कि लोग कहेंगे, ताने देंगे, पर जब घर की चूल्हा-चौका रोशन होगा, तो वही लोग तारीफ़ भी करेंगे। शुरूआत में ससुर जी को भी एतराज़ था। एक दिन उन्होंने सीधे कह दिया—“बहू घर से बाहर काम करेगी, यह शोभा नहीं देता। और फिर, लोग भी क्या कहेंगे?”
अनिता ने चुपचाप उनकी बातें सुनीं। उसने प्रतिवाद नहीं किया। वह जानती थी कि हालात जब जवाब देते हैं, तो तर्क अपने आप खत्म हो जाते हैं। और वही हुआ। हालात ने उनका विरोध तोड़ दिया। अब वे खुद चुपचाप बहू की कोशिशों पर नज़र रखते, कभी कुछ कहते भी नहीं।
अनिता ने कई जगह आवेदन दिए। कुछ जगह से कोई जवाब न आया। कहीं से सीधा मना कर दिया गया। कई बार तो उसकी आँखें भर आतीं, पर उसने हार नहीं मानी। वह बार-बार अपने मन से कहती—“अगर मैं हार मान लूँगी तो यह घर पूरी तरह बिखर जाएगा।” किस्मत आखिर मेहनती लोगों का साथ देती है।
एक सुबह जब डाकिया एक चिट्ठी थमा गया, तो उसके हाथ काँप उठे। लिफाफे पर साफ लिखा था—“आपको साक्षात्कार हेतु बुलाया जाता है।” चिट्ठी पढ़ते ही उसकी आँखों से आँसू निकल आए। उसने ससुर जी के चरण छुए और मन ही मन कहा—“अब घर की इज़्ज़त और चूल्हा दोनों मैं बचाऊँगी। पढ़ाई बेकार नहीं जाएगी। लोग चाहे जितना कहें, पर अब हालात को बदलना मेरे हाथ में है।”
उस रात अनिता को नींद नहीं आई। वह बार-बार सोचती रही—“क्या मैं यह कर पाऊँगी? क्या सचमुच मुझे नौकरी मिल जाएगी? अगर साक्षात्कार में मुझसे कुछ गलत पूछ लिया गया तो?” डर भी था, लेकिन उम्मीद उससे ज्यादा थी।
साक्षात्कार का दिन आया। अनिता ने अपनी सबसे सादी-सी साड़ी पहनी। पैरों में पुरानी चप्पल, लेकिन चेहरे पर आत्मविश्वास। घर से निकलते समय ससुर जी ने धीमे स्वर में कहा—“जा बहू, भगवान तेरे साथ है।” बस इतना सुनकर उसकी आँखों में हिम्मत आ गई।
साक्षात्कार हॉल में कई लोग बैठे थे। सबके कपड़े अच्छे थे, आत्मविश्वास से भरे हुए। अनिता ने भीतर से खुद को समझाया—“मैं यहाँ किसी से कम नहीं हूँ। मेरा मकसद बड़ा है। मुझे अपनी सास-ससुर और बच्चों के लिए लड़ना है।”
उससे कई सवाल पूछे गए। उसकी आवाज़ थोड़ी काँप रही थी, लेकिन उसके जवाबों में सच्चाई थी। इंटरव्यू लेने वालों ने एक-दूसरे की ओर देखा और मुस्कुरा दिए। अंत में उन्होंने कहा—“हम आपको जल्द ही सूचित करेंगे।”
अनिता घर लौटी। घर का दरवाज़ा खोलते ही ससुर जी की नज़र उसके चेहरे पर गई। उन्होंने पूछा—“कैसा रहा?” अनिता ने हल्की मुस्कान दी—“भगवान पर भरोसा है।”