अब नहीं शारदा नहीं नहीं अब तो मैं भी नंदू की बात समझने लगा हूं। शायद इस सब के पीछे कोई अच्छाई छुपी हो। देखो पिताजी क्या वाकई आप इतना शांत कैसे रह सकते हैं? क्योंकि बेटा अब मैं जान गया हूं। हर घटना के पीछे एक सीख छिपी होती है। आगे कुछ दिनों तक परिवार कठिन दौर से गुजरा। पुलिस की जांच चलती रही। दुकान बंद थी। आमदनी रुकी हुई थी। लेकिन तभी एक दिन गांव के सबसे बड़े व्यापारी भगवान दास अचानक रामदास के घर आए।
देखो भाई रामदास मुझे पता है कि तुम पर क्या बीती है लेकिन मैं तुम्हारे साथ हूं। मैंने हमेशा तुम्हारे काम को ईमानदारी से देखा है। इस केस में जिसने भी झूठी शिकायत की है मैं उसे बेनकाब करूंगा। और एक बात और जब तक तुम्हारी दुकान नहीं खुलती मेरी दुकान तुम्हारी दुकान है। भगवान दास जी आप जैसे प्रतिद्वंदी से यह उम्मीद तो नहीं थी।
भाई प्रतिद्वंदिता तो व्यापार में होती है। इंसानियत में थोड़ी होती है। और हां नंदू को मेरा सलाम कहना। उसकी बातें अब मुझे भी समझ में आने लगी है। जांच के 10वें दिन रिपोर्ट आई। रामदास निर्दोष थे। किसी जलनखोर व्यापारी ने झूठी रिपोर्ट दर्ज करवाई थी। पुलिस ने क्षमा मांगी और दुकान वापस रामदास को सौंप दी।
उस शाम सब लोग फिर पीपल के पेड़ के नीचे बैठे थे। नंदू जो हुआ अच्छा हुआ। मालकिन भगवान बस थोड़ा चौंकाने का शौकीन है पर करता वही है जो सही हो। हां इस संकट ने हमें बहुत कुछ सिखाया। धैर्य, विश्वास और अपनों की परख। अब रामदास के परिवार में एक नई ऊर्जा आ गई थी।
किशोर अब व्यापार में अधिक रुचि लेने लगा। कल्पना गांव के बच्चों को चित्र बनाना सिखाने लगी और नंदू वहीं था। पर अब सबकी नजरों में उसका सम्मान बढ़ चुका था। एक दिन गांव के मंदिर में एक बड़ा आयोजन था।
गांव वालों ने तय किया कि इस साल गांव का गौरव पुरस्कार रामदास को दिया जाएगा और उसके साथ विशेष मान्यता दी जाएगी नंदू को। देखिए इस बार का विशेष पुरस्कार एक ऐसे व्यक्ति को दिया जा रहा है जिसकी सोच ने पूरे गांव को सकारात्मक दृष्टिकोण सिखाया है। स्वागत करें नंदू।
तालियों की गिड़गड़ाहट में नंदू मंच पर गया। मैं मैं बड़ा आदमी नहीं हूं। लेकिन एक बात कहूंगा जिंदगी में चाहे कितना भी बड़ा तूफान क्यों ना आए अगर मन शांत हो तो हर तूफान अपने साथ कुछ ना कुछ अच्छा लेकर ही आता है। इसीलिए जो हुआ अच्छा हुआ उस दिन से नंदू अब बस नौकर नहीं रहा। वो रामदास जी के परिवार का हिस्सा बन चुका था दिल से।