रामदास की ईमानदारी पर लगा दाग, पूरा गांव सन्न लेकिन नंदू की सोच ने अंधेरे में रोशनी जगा दी।

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भैया के दोस्त के यहां बर्थडे पार्टी है। हां पिताजी मैं तो बताना ही भूल गया। बिल्कुल भी समझदारी नहीं है तुम लोगों में। खाना नहीं खाना था तो पहले बता देते। जो हुआ अच्छा हुआ। अबे नंदू तुझे तो मैं एक दिन बहुत मारने वाली हूं। हर बार उल्टा बोलता है। जा अंदर काम कर। अरे शारदा तू भी ना इसे छोड़ दे। इसकी बातें तो अब मजाक बन गई है। 

तभी दरवाजे पर घंटी बजी। शारदा ने दरवाजा खोला। बाहर माधवी और उसका पति सुनील खड़े थे। दोनों को अंदर बुलाया गया और सबने मिलकर खाना खाया। आ देखा शारदा अगर हमारे बच्चे घर पर होते तो खाना कम पड़ जाता। नंदू फिर से सही निकला। जो हुआ अच्छा हुआ।

 हां मान गए। कभी-कभी इसकी बातें सच हो जाती हैं। हां हां मैं तो हमेशा ही सही कहता हूं मालकिन। जो हुआ अच्छा हुआ। जाचा अब तो तुझे गले लगाकर धन्यवाद देने का मन कर रहा है। रात को पीपल के पेड़ के नीचे रामदास, शारदा, किशोर, कल्पना और नंदू सब बैठकर बात कर रहे थे। गांव में हवा में ठंडक थी।

लेकिन रिश्तों की गर्माहट बरकरार थी। हां नंदू वैसे सही कहूं तू थोड़ा अलग तो है लेकिन शायद तेरी नजरों में जो सोच है वो हमसे ज्यादा गहरी है। साहब जिंदगी में हर बात का कोई ना कोई कारण तो होता है। हमें बस अच्छे की उम्मीद रखनी चाहिए। जो हुआ अच्छा हुआ अच्छा हुआ। गांव में धीरे-धीरे सर्दियां दस्तक दे रही थी। खेतों में कोहरे की चादर बिछी रहती और लोग अब सुबह जल्दी उठकर अपनेपने कामों में लग जाते थे।

नंदपुर भी जैसे किसी पुराने किस्से की तरह चलता जा रहा था। शांति, सहजता और एक हल्का सा हास्य, जो नंदू की जो हुआ, अच्छा हुआ वाली आदत से जुड़ा था। एक दिन की बात है जब रामदास की दुकान पर अचानक पुलिस आ गई। सेठ रामदास जी हां जी मैं ही हूं। कहिए क्या बात है? आपके नाम पे एक शिकायत आई है। कहा गया है कि आपकी दुकान पर नकली ब्रांड के कपड़े बेचे जा रहे हैं। क्या बात कर रहे हैं आप?


यह कैसे हो सकता है? मैं तो वर्षों से वही व्यापारी हूं जो ईमानदारी से व्यापार करता है। यह कोई झूठी शिकायत होगी। देखिए, हमें कार्यवाही करनी होगी। दुकान आपकी सील की जा रही है जब तक पूरी की पूरी कार्यवाही नहीं हो जाती। ठीक है। पूरे गांव में हड़कंप मच गया। रामदास सदमे में था। उनके परिवार पर संकट के बादल मंडरा रहे थे। ये सब क्या हो रहा है भगवान?


हमारे तो पांव तले जमीन ही खिसक गई। ओफो आखिरकार किसने की होगी ऐसी ओछी हरकत?
अरे पिताजी पर कोई उंगली उठा भी कैसे सकता है? और तभी घर के कोने से आवाज आई जो हुआ अच्छा हुआ नंदू इस बार अगर तूने कुछ बोला तो मैं सच में तुझे घर से बाहर निकाल दूंगी।

Ankit Verma

अंकित वर्मा एक रचनात्मक और जिज्ञासु कंटेंट क्रिएटर हैं। पिछले 3 वर्षों से वे डिजिटल मीडिया से जुड़े हैं और Tophub.in पर बतौर लेखक अपनी खास पहचान बना चुके हैं। लाइफस्टाइल, टेक और एंटरटेनमेंट जैसे विषयों में विशेष रुचि रखते हैं।

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