रामदास की ईमानदारी पर लगा दाग, पूरा गांव सन्न लेकिन नंदू की सोच ने अंधेरे में रोशनी जगा दी।

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नंदपुर गांव अपनी सादगी, हरियाली और शांत वातावरण के लिए जाना जाता था। यहां की मिट्टी में कुछ खास था। एक अपनापन, एक मिठास। उसी गांव में एक सम्मानित व्यापारी रहते थे। सेठ रामदास। रामदास जी का व्यापार कपड़ों का था और आसपास के कई गांव में उनकी दुकान मशहूर थी। उनके साथ उनकी पत्नी शारदा, बेटा किशोर, बेटी कल्पना और एक नौकर नंदू रहते थे। नंदू थोड़ा भोला भाला लेकिन ईमानदार लड़का था। उसकी एक आदत थी जो सबको चुभती थी। वो हर मुसीबत या हादसे के बाद कहता जो हुआ अच्छा हुआ। अरे नंदू अरे कहां मर गया रे? सुबह-सुबह एक प्याली चाय भी नहीं मिल सकती इस घर में।

नंदू आया साहब आया आया आया आया बस अभी आया वो क्या है साहब बस स्टोर ही तो नहीं चल रहा था ये लीजिए आपके लिए चाय ले अरे नालायक ये क्या किया तूने कप तोड़ दिया और ऊपर से चाय भी गिरा दी कभी कोई काम ढंग से करेगा भी कि नहीं करेगा नालायक कहीं का हे भगवान यह वही सेट था जो मैंने कल ही खरीदा था अब दो कप टूट चुके हैं। मैं तो कहती हूं इसे निकाल दो।

एक नौकर का काम भी ढंग से नहीं होता इससे। मालकिन जो हुआ अच्छा हुआ। अरे हर बार यही रट लगाता रहता है। जो हुआ अच्छा हुआ अच्छा हुआ। अरे क्या अच्छा हुआ? कब टूटना अच्छा हुआ? चल जा के सफाई कर। और सुन आगे से ऐसा कुछ हुआ तो तेरा ये अच्छा हुआ वाली आदत जो है ना तेरे लिए भारी पड़ जाएगी।

ए खींच के मारूंगा फिर बोलना जो हुआ अच्छा हुआ अच्छा हुआ चल साफ कर दिन बीतते गए शारदा को ऑनलाइन नया कप सेट पसंद आ गया था रामदास ने उसे मना किया लेकिन पत्नी की जिद के आगे झुकना पड़ा तीन दिन बाद जब पार्सल आया और शारदा ने नए कप देखे तो खुशी से बोली नंदू सही कहता था जो हुआ अच्छा हुआ अगर पुराने कप ना टूटते तो यह सुंदर कप मुझे मिलते ही नहीं।

 आ हा मालकिन मैं तो हमेशा से सही कहता हूं। जो हुआ अच्छा हुआ। चल चल ज्यादा हवा में मत उड़। अब ये मत तोड़ देना। एक दोपहर की बात थी। पिताजी आज भैया और मैं खाना बाहर खाएंगे।

Ankit Verma

अंकित वर्मा एक रचनात्मक और जिज्ञासु कंटेंट क्रिएटर हैं। पिछले 3 वर्षों से वे डिजिटल मीडिया से जुड़े हैं और Tophub.in पर बतौर लेखक अपनी खास पहचान बना चुके हैं। लाइफस्टाइल, टेक और एंटरटेनमेंट जैसे विषयों में विशेष रुचि रखते हैं।

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