यह कहानी एक छोटे से गांव की है जिसका नाम था रामपुर। यह गांव अपने शांत वातावरण और मेहनती लोगों के लिए जाना जाता था। लेकिन जहां अच्छाई होती है वहीं बुराई भी छुपी रहती है। इस कहानी में दो मुख्य पात्र हैं। रघु और मोहन। रघु एक ईमानदार किसान था। वो सुबह से शाम तक खेतों में मेहनत करता और जो भी कमाता उसी में अपने परिवार का पालन पोषण करता। मोहन उसी गांव का रहने वाला था लेकिन उसकी आदतें कुछ ठीक नहीं थी।
वो दूसरों को धोखा देकर जल्दी अमीर बनना चाहता था। एक दिन की बात है। हां, हे भगवान, इस बार फसल अच्छी हो जाए तो कर्ज उतार दो। बस ईमानदारी से मेहनत करता रहूंगा ऐसे ही। उधर मोहन गांव की चौपाल पर बैठा था और अपनी चाले सोच रहा था। रघु कितना भोला है। अगर मैं उसकी फसल हथिया लूं तो अच्छा पैसा मिल जाएगा।
मुझे बस कोई बहाना बनाना होगा। रघु और मोहन पुराने जानकार थे। मोहन ने अपनी बातों से रघु को भरोसे में लेने का प्लान बनाया। अगले दिन मोहन रघु के खेत पर पहुंचा। अरे रघु भाई राम राम नमस्ते और भैया कैसे हो? सुना है इस बार तुम्हारी फसल बहुत अच्छी हुई है। हां भाई भगवान की कृपा से सब बढ़िया है।
बस दुआ करो कि सही दाम मिल जाए। अरे मैं तो खुद तुम्हारी मदद ही करने आया हूं। पता है? मेरे एक रिश्तेदार हैं शहर में। वो बहुत बड़े व्यापारी हैं और फसल अच्छे दामों में खरीदते हैं। तो क्यों ना इस बार मैं तुम्हारी फसल उन्हें बेचवा दूं। क्या कहते हो? अ मगर मुझे ऐसे सौदा करने की आदत नहीं है।
भाई मैं तो हार्ट में ही बेचता हूं। अरे यही तो बात है भाई। मैं हूं ना तुम्हें कुछ नहीं करना पड़ेगा। बस फसल मुझे दे देना। बाकी सब मैं देख लूंगा। पैसा भी सीधे तुझे दे दूंगा। तो कोई दिक्कत की बात ही नहीं है। क्यों?
प्रभु मोहन की बातों में आ गया।
उसने अपनी पूरी फसल मोहन को सौंप दी। बिना किसी लिखित वादा या गवाही के एक हफ्ता बीत गया। रघु हर दिन मोहन से पैसे के बारे में पूछता। लेकिन मोहन हर बार नया बहाना बना देता। ए मोहन भाई पैसा कब मिलेगा? भाई मुझे उधार चुकाना है। अब क्या कहे रघु भाई? व्यापारी गए हैं बाहर।