मायके की इज़्ज़त पर उठे सवालों से टूटी चुप्पी, बहू की हिम्मत भरी आवाज़ जिसने रिश्तों की सच्चाई और सम्मान की लड़ाई सबके सामने रख दी

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गीता जी ने फिर ज़हर उगला—
“हमने कौन सा गलत कह दिया तेरे मायके वालों के बारे में? दामाद को खाने में सब्ज़ी-रोटी दी, शगुन में ग्यारह सौ रुपये थमा दिए, दवाई मँगवाई और पैसे तक नहीं दिए। दामाद से घर का काम करवाना क्या संस्कार हैं तेरे?”

वरुण का चेहरा अब उतर गया था। उसे याद आया कि ये सब वही बातें थीं जो उसने अपने मायके से लौटकर माँ और बहन को सुनाई थीं। उसने कभी सोचा ही नहीं था कि उसकी बातें ताने बन जाएँगी, हथियार बन जाएँगी संध्या को नीचा दिखाने के लिए।

संध्या की आँखों में आँसू थे, पर आवाज़ सख़्त थी।
“वरुण, सुन लिया? मैं एक साल से चुप थी। सोचती थी कि घर है, शांति बनी रहे। पर अब नहीं। मैंने कितनी बार कहा था तुमसे—बहू के मायके की छोटी-छोटी बातें मत बताया करो। पर तुमने कभी ध्यान नहीं दिया। अब देख लो, वही बातें हथियार बन गईं।

मेरे माता-पिता की गलती क्या थी? भाई बाहर पढ़ता है, पापा उससे मिलने गए थे। मम्मी बीमार थी। फिर भी जो भी घर में था, प्यार से खिलाया। क्या उस प्यार की कद्र करना इतना मुश्किल था? दवाई मँगवाई तो कौन सा गुनाह हो गया? पैसे तो देने ही वाली थीं, पर तुमने खुद मना कर दिया। और आज वही ताना बन गया।”

वह रुकी और गहरी साँस लेते हुए बोली—
“वरुण, मायका हर औरत का सहारा होता है। अगर वहाँ के बारे में ताने सुनाऊगे तो सोचो, मेरे दिल पर क्या बीतती है। मायके की बातें छुपाना सिर्फ मेरी ज़िम्मेदारी क्यों? तुम क्यों नहीं सोचते कि हर बात बताकर मेरी इज़्ज़त दाँव पर लगा देते हो? अगर पड़ोसियों के सामने मैं सच बोलूँ तो गुनाह मेरा, लेकिन तुम्हारी माँ और बहन वही बातें चटकारे लेकर सुनाएँ तो सही? अब और नहीं। आज से सम्मान दोगे तो सम्मान पाओगे। वरना हर रोज़ यही हंगामा होगा।”

इतना कहकर संध्या अपने कमरे में चली गई।

वरुण सन्न रह गया। उसने माँ और बहन की तरफ देखा। गीता जी तुनककर बोलीं—
“देखा, कितनी तेज़ है तेरी पत्नी। तमीज़ नाम की चीज़ नहीं।”

वरुण ने गहरी सांस ली और धीमे स्वर में कहा—
“माँ, कुछ बातें सोच-समझकर करनी चाहिए। अगर एक साल से चुप थी संध्या और आज बोली है, तो ज़ाहिर है हमने ही उसे मजबूर किया है। मुझे अंदाज़ा नहीं था कि इतनी छोटी-छोटी बातें तिल का ताड़ बन जाएँगी।”

यह कहकर वह भी कमरे में चला गया। हाल में सिर्फ सास और ननद रह गईं। पर इस बार माहौल वैसा नहीं था। वरुण के शब्दों ने गहरी चोट दी थी।

उस दिन के बाद वरुण ने ठान लिया—अब वह अपने मायके की कोई भी छोटी-बड़ी बात घर पर नहीं बताएगा। और सच यही था, जब दोनों घरों की इज़्ज़त बराबर हो, तभी रिश्ता टिकता है।

संध्या की आवाज़ ने उस घर की चुप्पी तोड़ी थी, और सबको आईना दिखा दिया था।

Ankit Verma

अंकित वर्मा एक रचनात्मक और जिज्ञासु कंटेंट क्रिएटर हैं। पिछले 3 वर्षों से वे डिजिटल मीडिया से जुड़े हैं और Tophub.in पर बतौर लेखक अपनी खास पहचान बना चुके हैं। लाइफस्टाइल, टेक और एंटरटेनमेंट जैसे विषयों में विशेष रुचि रखते हैं।

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