मुंबई की तंग भीड़भाड़ वाली गलियों में लीला नाम की एक बूढ़ी और गरीब महिला अपना जीवन बिता रही थी। उसकी जिंदगी का आधार था उसका छोटा सा सब्जी का ठेला। जिसे वह हर सुबह अपने झुग्गी वाले घर से निकालती और सड़कों पर धकेलती। उसकी कमर झुक गई थी। हाथों की रगें उभर आई थी और चेहरा झुर्रियों से भर गया था। लेकिन उसकी आंखों में अभी भी एक हल्की सी चमक बाकी थी।
वो अपनी बेटी मीरा के लिए जीती थी जो एक स्थानीय कॉलेज में पढ़ती थी और जिसके सपनों को पूरा करने के लिए लीला दिन रात मेहनत करती थी। उसकी कमाई इतनी कम थी कि कई रातें मां-ब भूखे पेट सो जाती थी।
लेकिन लीला कभी हारी नहीं। एक दोपहर जब सूरज अपनी पूरी ताकत से चमक रहा था। लीला अपना ठेला सड़क के उस पार ले जा रही थी। उसकी चाल धीमी थी और ठेले का एक पहिया टूटने की कगार पर था। तभी एक तेज रफ्तार पुलिस की जीप ने उसके ठेले को जोरदार टक्कर मार दी। ठेला पलट गया और टमाटर, गोभी, मिर्च सब कुछ सड़क पर बिखर गया। लीला भी जमीन पर गिर पड़ी।
उसके घुटनों से खून बहने लगा। जीभ रुकी और उसमें से एक मोटा गंजा पुलिस इंस्पेक्टर उतरा। उसकी वर्दी पर पसीने के दाग थे और चेहरे पर एक क्रूर मुस्कान थी। लीला ने हिम्मत जुटाई और अपने बिखरे हुए माल को देखते हुए इंस्पेक्टर से मुआवजा मांगा। उसकी आवाज कांप रही थी लेकिन उसमें एक मां की मजबूरी थी।
इंस्पेक्टर ने उसकी बात को हंसी में उड़ा दिया। उसने लीला को धमकाया, उसकी गरीबी का मजाक उड़ाया और जब लीला ने कोर्ट जाने की बात कही तो इंस्पेक्टर का गुस्सा भड़क उठा। उसने लीला के चेहरे पर एक जोरदार थप्पड़ मारा। बूढ़ी और कमजोर लीला जमीन पर गिर पड़ी।
उसका सिर सड़क से टकराया और वह बेहोश हो गई। इंस्पेक्टर ने उसे वहीं छोड़ दिया। अपनी जीप में बैठा और धूल उड़ाता हुआ चला गया। आसपास के लोग दौड़े आए। किसी ने लीला को उठाया। किसी ने उसकी सब्जियों को समेटने की कोशिश की। लेकिन ज्यादातर माल कुचल चुका था।
भीड़ ने उसे नजदीकी सरकारी अस्पताल पहुंचाया। जहां उसकी हालत को देखते हुए उसे तुरंत भर्ती कर लिया गया। उसी शाम जब मीरा अपने कॉलेज से लौटी तो पड़ोसियों ने उसे मां के साथ हुई घटना की खबर दी। उसका दिल डूब गया और वह भागते हुए अस्पताल पहुंची।