सीमा ने गहरी साँस ली, जैसे कोई भारी बोझ भीतर से बाहर निकालना चाह रही हो। फिर धीरे से बोली उन्होंने माँ-पापा को बाँट दिया है।

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बँटवारे का दिन

अगले दिन बड़ा भाई गाड़ी लेकर आया। हरिशंकर जी भारी मन से बाहर आए। उन्होंने अपनी पत्नी रमा देवी का हाथ कसकर पकड़ लिया।
“रमा, मैं तुम्हें छोड़कर नहीं जाना चाहता।”

रमा देवी की आँखों से आँसू बह निकले।
“मैं भी तुम्हारे बिना नहीं रह पाऊँगी। चलो, किसी आश्रम में ही चलें। कम से कम साथ तो रहेंगे।”

लेकिन हरिशंकर जी ने गहरी साँस लेकर कहा—
“बच्चों की जिद के आगे हम बेबस हैं। अगर तू भी मेरे साथ चली जाएगी तो नीलम पर बोझ आ जाएगा। उसे घर-परिवार संभालना है।”

इतना कहकर उन्होंने पत्नी का हाथ धीरे-धीरे छोड़ दिया और गाड़ी में बैठ गए। रमा देवी वहीं खड़ी रह गईं, टूटे दिल और डबडबाई आँखों के साथ।

माँ का अकेलापन

उस दिन के बाद रमा देवी ने खाना-पीना लगभग छोड़ दिया। नीलम लाख मनाती रही, तरह-तरह के पकवान बनाकर सामने रखती रही, पर रमा देवी बस एक ही बात कहतीं—
“बिटिया, बिना तेरे बाबा के मेरा मन नहीं लगता। मैं अधूरी हूँ।”

तीन दिन बाद उनकी हालत बिगड़ गई। उन्हें अस्पताल ले जाया गया। डॉक्टर ने गंभीर स्वर में कहा—
“इनकी सबसे बड़ी बीमारी अकेलापन है। दवाएँ तो काम कर सकती हैं, लेकिन दिल के खालीपन की कोई दवा नहीं।”

नीलम माँ का हाथ पकड़कर फूट-फूटकर रो पड़ी।
“माँ, आप मुझे छोड़कर मत जाइए। आप ही मेरी ताकत हैं। आपने हमेशा मुझे बेटी समझा, अब मुझे अकेला मत कीजिए।”

रमा देवी ने कमजोर मुस्कान दी और धीमे स्वर में कहा—
“बिटिया, तूने बहु होकर बेटी से बढ़कर साथ दिया। अब तुझसे बस एक वचन चाहिए—तेरे बाबा का ध्यान रखना।”

ये उनके आखिरी शब्द थे। अगले ही पल उनकी साँसें थम गईं।

बाबा का दर्द

नीलम और अमित माँ का पार्थिव शरीर लेकर घर लौटे। तभी सामने बड़े भाई की गाड़ी से हरिशंकर जी उतरे। जैसे ही उन्होंने पत्नी का निर्जीव शरीर देखा, उनके पैर लड़खड़ा गए। वे ज़मीन पर बैठ गए और फूट-फूटकर रोने लगे।

“रमा, तूने मेरा साथ छोड़ दिया। अब मैं कैसे जीऊँगा?”

नीलम ने उन्हें संभालने की कोशिश की, पर वे उसकी गोद में सिर रखकर धीमे स्वर में बोले—
“बिटिया, अब मेरी दुनिया खत्म हो गई है।”

यह कहकर उनकी भी साँस थम गई।

पछतावे की विरासत

पूरा घर चीखों और सन्नाटे से भर गया। अमित और उसका बड़ा भाई पछतावे में डूबकर रोते रहे। पर अब बहुत देर हो चुकी थी।

नीलम के दिल में बस एक ही सवाल बार-बार गूँज रहा था—
“किस विरासत के लिए बेटों ने अपने माँ-पापा को बाँट दिया? क्या यही संस्कार थे? क्या यही संतानों का कर्तव्य था?”

नीलम जानती थी, अब जवाब कोई नहीं देगा।

Ankit Verma

अंकित वर्मा एक रचनात्मक और जिज्ञासु कंटेंट क्रिएटर हैं। पिछले 3 वर्षों से वे डिजिटल मीडिया से जुड़े हैं और Tophub.in पर बतौर लेखक अपनी खास पहचान बना चुके हैं। लाइफस्टाइल, टेक और एंटरटेनमेंट जैसे विषयों में विशेष रुचि रखते हैं।

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