सच का सामना
पर आज सीमा की बात ने नीलम की जड़ें हिला दीं। वह सीधे कमरे में गई, जहाँ उसका पति अमित बैठा था। उसकी आँखों में सवालों का तूफ़ान था।
“ये सब क्या है, अमित? माँ-पापा को बाँटना कोई सौदेबाज़ी है क्या?”
अमित चुप रहा। चेहरे पर अपराधबोध था, पर शब्द गले से नहीं निकल रहे थे। थोड़ी देर बाद उसने धीमे स्वर में कहा—
“नीलम, ये मेरे अकेले का फैसला नहीं था। बड़े भैया ने साफ कह दिया कि वे माँ को अपने पास नहीं रख सकते। पापा को तो मान लिया, पर माँ… उनके लिए बोझ हैं। इसलिए… समझौता करना पड़ा।”
नीलम की आँखों में आँसू भर आए। उसका गला रुंध गया। गुस्से में उसने कहा—
“अगर माँ-पापा तुम्हारे लिए बोझ हैं, तो पहले मुझे बाँट लो। मैं भी उनके साथ ही चली जाऊँगी।”
अमित के पास कोई जवाब नहीं था। उसकी नज़रें झुक गईं।
मोहल्ले की चर्चा
धीरे-धीरे यह खबर पूरे मोहल्ले में फैल गई। पड़ोसी आकर अपनी राय देने लगे।
कमला ताई ने दुखी होकर कहा—
“बिटिया, यह तो बहुत गलत हो रहा है। माँ-बाप को बाँटने वाले बेटे कभी सुखी नहीं रह सकते। हमने तो देखा है, तेरी सास तुझे कितना चाहती हैं।”
शर्मा जी ने भी सिर हिलाते हुए कहा—
“आजकल बेटों को बस विरासत चाहिए, माता-पिता नहीं। यह सब देखकर दिल काँप उठता है। जिन बच्चों के लिए माँ-बाप अपना सब कुछ न्यौछावर कर देते हैं, वही उन्हें अपने हिसाब से बाँटते हैं।”
नीलम बस चुप रही। उसका मन आक्रोश और असहायता से भरा हुआ था।












