दरवाज़ा खुलते ही वह जल्दी-जल्दी बेटे को कमरे में भेजती और खुद बाथरूम में गायब हो जाती।

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अगले ही दिन मैं उसे दिल्ली एम्स लेकर गया। वहाँ डॉक्टरों से पूरी जाँच करवाई, इलाज शुरू कराया। खर्च आसान नहीं था, लेकिन मैंने तय कर लिया कि चाहे जितनी मुश्किलें आएँ, हम साथ में झेलेंगे।

उन शुरुआती दिनों में अंजलि की आँखों में लगातार डर और उलझन थी। वह अस्पताल की सफ़ेद दीवारों और मशीनों से सहमी हुई लगती। लेकिन जब-जब उसे इंजेक्शन लगता, मैं उसका हाथ पकड़कर कहता,
“मैं यहाँ हूँ। हम मिलकर इसे पार करेंगे।”

कभी-कभी छोटा आरव भी अस्पताल आता और अपनी मासूम बातें करके उसे हँसाने की कोशिश करता। नर्सें देखकर मुस्कुरातीं और कहतीं, “आप बहुत भाग्यशाली हैं, हर किसी का परिवार ऐसा नहीं होता।”

धीरे-धीरे, अंजलि का डर थोड़ा-थोड़ा कम होने लगा। मैंने उसे एक नया काम दिया—आशा की डायरी लिखना। हर इंजेक्शन के बाद हम उस दिन की एक खुशगवार बात लिखते—जैसे आरव ने नई कविता सुनाई, हमने साथ में बारिश देखी, या हमने छोटी-सी किताब पढ़ी। वह डायरी धीरे-धीरे भरने लगी, और हर पन्ना हमें याद दिलाता कि हम सिर्फ़ दर्द नहीं, छोटी-छोटी खुशियाँ भी बाँट रहे हैं।

करीब एक साल बाद, पतझड़ की एक सुबह, डॉक्टर ने मुस्कुराकर कहा,
“रिपोर्ट्स बताती हैं कि हालत में सुधार है। अगर इलाज जारी रहा तो आप कई साल अच्छे से जी सकती हैं।”

अंजलि की आँखों में आँसू छलक आए। उसने मुझे गले लगाया और रोते हुए बोली,
“मैंने सोचा था कि शायद यह बीमारी मुझे हमसे छीन लेगी, लेकिन तुमने मुझे विश्वास दिलाया।”

मैं भी रो पड़ा।
“हम कर सकते हैं। हमेशा कर पाएँगे।”

उस दिन हम अस्पताल के बगीचे में आरव के साथ टहलने निकले। महीनों बाद मैंने अंजलि को खुलकर मुस्कुराते देखा। उसके हाथ पर पट्टी नहीं थी, और उसकी आँखों में उम्मीद चमक रही थी।

हम जानते थे कि आगे की राह आसान नहीं है। इलाज अभी जारी रहेगा, मुश्किलें भी आएँगी। लेकिन अब फर्क था—अब अंजलि अकेली नहीं थी। उसके साथ मैं और आरव थे, हर कदम पर।

उस रात, जब हम घर लौटे, मैंने उसे देखा। वही औरत, जो पहले बाथरूम में छुपकर अपने ज़ख्म धोती थी, अब मेरी बाहों में सिमटकर सो रही थी। और मुझे एहसास हुआ कि असली खुशी तूफ़ानों से बचने में नहीं है, बल्कि उन तूफ़ानों के बीच किसी का हाथ थामने में है।

मैंने मन ही मन वादा किया कि मैं कभी उसे अकेले दर्द सहने नहीं दूँगा।

क्योंकि उस दिन अलमारी की दरार से मैंने जो देखा था, वह सिर्फ़ उसके हाथों पर पड़े ज़ख्म नहीं थे—वह मेरे दिल के ज़ख्म थे। और उन्हें भरने के लिए हम दोनों का प्यार ही सबसे बड़ी दवा था।

Ankit Verma

अंकित वर्मा एक रचनात्मक और जिज्ञासु कंटेंट क्रिएटर हैं। पिछले 3 वर्षों से वे डिजिटल मीडिया से जुड़े हैं और Tophub.in पर बतौर लेखक अपनी खास पहचान बना चुके हैं। लाइफस्टाइल, टेक और एंटरटेनमेंट जैसे विषयों में विशेष रुचि रखते हैं।

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