यह कहानी शुरू होती है हरिपुर नाम के एक छोटे से गांव से। जो पहाड़ों की गोद में बसा हुआ था। गांव में लगभग 500 घर थे। जहां हर कोई एक दूसरे को जानता था। सुबह सूरज की किरणें जब पहाड़ों से नीचे उतरती तो गांव सुनहरी रोशनी में नहा उठता। किसान अपने खेतों की ओर जाते महिलाएं कुएं से पानी भरने निकलती और बच्चे गलियों में खेलते नजर आते। गांव के बीच में एक पुराना मंदिर था।
जहां हर श्याम भजन गूंजते और लोग इकट्ठा होते। गांव का सरपंच था रामलाल एक 60 साल का बुजुर्ग जिसका हुक्म गांव में कानून माना जाता था।
गांव की जेल थी एक जजर इमारत जो खेतों के किनारे पर बनी थी। इसमें दो छोटे सेल थे जिनमें लोहे की सलाखें जंग खा रही थी। यह जेल छोटी थी लेकिन गांव के लिए काफी थी क्योंकि यहां अपराध कम ही होते थे। इस कहानी की शुरुआत होती है तीन लड़कियों से नेहा, मोनी और रेखा।
नेहा थी 20 साल की, लंबी और गोरी। उसकी आंखों में एक साहसिक चमक थी। मोनी थी 19 साल की। शांत और विचारशील जो हमेशा कुछ सोचती रहती थी। रेखा थी सबसे छोटी, 18 साल की, भोली और मासूम, जिसकी मुस्कान किसी का भी दिल जीत लेती थी। यह तीनों एक ही घर में रहती थी, और आपस में गहरी दोस्त थी।
उनका जीवन साधारण था। दिन में खेतों में काम करना, शाम को एक दूसरे के साथ हंसीज़ाक करना। लेकिन एक दिन सब कुछ बदल गया। सरपंच रामलाल ने उन पर मंदिर से चांदी के गहने चुराने का इल्जाम लगा दिया। लड़कियां निर्दोष थी। लेकिन गांव में सरपंच का फैसला कोई नहीं टाल सकता था।