माँ ने काँपती आवाज़ में कहा मैंने वो पैसे खर्च नहीं किए मैंने सब भेज दिए किसी और को वो व्यक्ति तुम्हारा भाई है।

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हम स्तब्ध थे। सारे सालों का गुस्सा मानो पिघल गया। राकेश ने हमें अपने बेटे आरव की तस्वीर दिखाई—दुबला-पतला, बड़ी-बड़ी उदास आँखों वाला बच्चा।

हमारे दिल काँप गए। हमने सोचा था पैसे बर्बाद हो रहे हैं, लेकिन वो एक नन्ही ज़िंदगी को बचा रहे थे।

अगले दिन हम पटना के अस्पताल पहुँचे। वहाँ एक 9 साल का बच्चा लेटा था—पीला चेहरा, कमजोर शरीर। लेकिन जैसे ही उसने हमें देखा, उसकी आँखें चमक उठीं। उसने धीमी आवाज़ में पूछा—“पापा, ये कौन हैं?”

राकेश की आँखें भर आईं—“ये तुम्हारी मौसियाँ हैं।”

बच्चे के चेहरे पर हल्की मुस्कान आई—“मेरी मौसियाँ हैं?”

उस मासूम सवाल पर हमारी आँखें छलक पड़ीं। हम उसके पास बैठ गए, उसका हाथ थाम लिया।

उसने अपने तकिये के नीचे से एक पुरानी कॉपी निकाली। उसमें छोटे-छोटे सपने लिखे थे—“मैं स्कूल जाना चाहता हूँ… फुटबॉल खेलना चाहता हूँ… मौसियों से मिलना चाहता हूँ।”

हर शब्द हमारे दिल को चीर रहा था।

हमने एक-दूसरे की तरफ देखा और तय किया—अब से आरव अकेला नहीं रहेगा। हम उसका ख्याल रखेंगे, सिर्फ़ पैसों से नहीं, बल्कि प्यार से भी।

राकेश रो पड़ा। बोला—“अगर माँ होतीं, तो आज सुकून से सोतीं।”

उस वक्त मुझे एहसास हुआ कि माँ ने हमें धोखा नहीं दिया था। उन्होंने अपना प्यार बाँटा था—न सिर्फ़ बेटियों के लिए, बल्कि उस बेटे के लिए भी, जिसे उन्होंने कभी अपना नाम नहीं दिया था।

सूरज ढल रहा था। आसमान लाल हो रहा था। मैंने सोचा—शायद माँ का आखिरी तोहफ़ा यही था, कि हमें एक भाई और एक भतीजा मिल जाए।

हाँ, हम टूटे थे। पर उस टूटन से एक नया रिश्ता जन्मा था। और शायद यही माँ का मकसद था—हमें सिखाना कि खून के रिश्ते कभी खत्म नहीं होते।

Ankit Verma

अंकित वर्मा एक रचनात्मक और जिज्ञासु कंटेंट क्रिएटर हैं। पिछले 3 वर्षों से वे डिजिटल मीडिया से जुड़े हैं और Tophub.in पर बतौर लेखक अपनी खास पहचान बना चुके हैं। लाइफस्टाइल, टेक और एंटरटेनमेंट जैसे विषयों में विशेष रुचि रखते हैं।

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