अमरेंद्र ने अपनी साँसें रोक लीं, जलपरी को लगा कि वो मर चुका है लेकिन जैसे ही चाकू उसकी छाती पर रखा गया, उसकी आँखें खुलीं और पिस्तौल चमक उठी।

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लेकिन अमरेंद्र का दिमाग शांत नहीं था। उसने अपनी खोज का दायरा बढ़ाया। गांव के एक कोने में जहां जंगल शुरू होता था, एक पुराना घर मिला। वह घर सालों से बंद था और उसकी दीवारों पर लताएं झड़ गई थी।

अमरेंद्र ने अपनी टीम को इशारा किया और वे घर में घुसे। अंदर अंधेरा था और हवा में सड़ांत की बूं। एक कोने में एक पुरानी अलमारी थी, जिसका ताला जंक खा रहा था। अमरेंद्र ने ताला तोड़ा और अंदर से जलपरी का कॉस्ट्यूम निकला। चमकीली त्वचा, नकली पूंछ और लंबे विघ अमरेंद्र की भौ सिकुड़ी। उसे समझ आ गया कि यह कॉस्ट्यूम और गायब हुए लोग दोनों का कोई ना कोई कनेक्शन था। अमरेंद्र ने अगले दिन एक योजना बनाई।

वह सादे कपड़ों में एक मछुआरे की तरह नदी पर निकला। उसने अपनी नाव को उसी दिशा में खेता। जहां हरिप्रसाद आखिरी बार देखा गया था। घंटों तक इंतजार के बाद पानी में हलचल हुई। जलपरी उभरी।

उसकी सुंदरता वैसी ही थी जैसी हरिप्रसाद ने देखी थी। लेकिन अमरेंद्र तैयार था। उसने जलपरी की बातों में हामी भरी और उसके पीछे चला। जलपरी उसे नदी के उसी सुनसान कोने में ले गई जहां खजाना होने की बात कही। जैसे ही उसने कहा खजाना यहीं नीचे है। अमरेंद्र पानी में उतर गया। जलपरी ने उसे जकड़ लिया और पानी में डूबाने की कोशिश की।

लेकिन अमरेंद्र ने मरने की एक्टिंग की। उसने अपनी सांसे रोकी और शरीर को ढीला छोड़ दिया। जलपरी को लगा कि वह मर चुका है। चार लोग जंगल से निकले और अमरेंद्र की लाश को उसी घर में ले गए। जैसे ही उन्होंने चाकू उठाया और उसकी छाती पर रखा अमरेंद्र की आंखें खुली।

उसने तेजी से एक हमलावर को लात मारी और अपनी पिस्तौल निकाल ली। उसी वक्त पुलिस की जीपों की आवाज जंगल में गूंजी। अमरेंद्र ने अपनी चप्पल में जीपीएस ट्रैकर लगाया था। जिसकी वजह से उसकी टीम ठीक समय पर पहुंच गई। चारों अपराधियों को हथकड़ियों लगी।

जलपरी जो असल में एक प्रोफेशनल स्कूबा ड्राइवर ईशानी थी ने सारी साजिश उगल दी। पूछताछ में खुलासा हुआ कि ईशानी और उसका गिरोह पिछले कई सालों से इस गांव में लोगों को लालच देकर मार रहा था। वे जलपरी के कॉस्ट्यूम का इस्तेमाल करते थे ताकि लोग भरोसा कर लें। फिर उन्हें मारकर उनके अंग, दिल, किडनी, फेफड़े ब्लैक मार्केट में बेचते थे। 50 60 लोग इस साजिश का शिकार बन चुके थे।

ईशानी की क्रूरता और चालाकी ने धानवाड़ी को मौत का गांव बना दिया था। लेकिन अमरेंद्र की हिम्मत और चतुराई ने इस काले कारोबार का अंत किया। अदालत में ईशानी और उसके साथियों को फांसी की सजा सुनाई गई। ठानवाड़ी में फिर से शांति लौटने लगी। लेकिन हर प्रसाद और उन तमाम लोगों की यादें गांव के दिल में हमेशा के लिए दफन हो गई। नदी अब भी बहती थी।

लेकिन अब उसकी लहरों में जलपरी का डर नहीं बल्कि एक नई सुबह की उम्मीद थी। अगर आपको हमारी मेहनत और यह वीडियो पसंद आई तो एक लाइक जरूर करें। ऐसी और बढ़िया-बढ़िया वीडियो देखने के लिए हमारे चैनल को करें सब्सक्राइब और कमेंट में बताइए आपको वीडियो कैसी लगी। मिलते हैं अगली वीडियो में। तब तक के लिए बाय।

Ankit Verma

अंकित वर्मा एक रचनात्मक और जिज्ञासु कंटेंट क्रिएटर हैं। पिछले 3 वर्षों से वे डिजिटल मीडिया से जुड़े हैं और Tophub.in पर बतौर लेखक अपनी खास पहचान बना चुके हैं। लाइफस्टाइल, टेक और एंटरटेनमेंट जैसे विषयों में विशेष रुचि रखते हैं।

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