अमरेंद्र ने अपनी साँसें रोक लीं, जलपरी को लगा कि वो मर चुका है लेकिन जैसे ही चाकू उसकी छाती पर रखा गया, उसकी आँखें खुलीं और पिस्तौल चमक उठी।

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सोना, चांदी और जवाहरात जो शायद 4 500 साल पुराना था। वह खजाना उसी नदी के तल में था और वह हरिप्रसाद को वहां ले जा सकती थी। हरप्रसाद की आंखों में लालच की चमक उभरी।

वह सोचने लगा कि अगर यह खजाना मिल गया तो उसकी और सावित्री की जिंदगी बदल जाएगी। गरीबी का दंश खत्म हो जाएगा। उसने जलपरी के पीछे चलने का फैसला किया। जलपरी ने उसे नदी के एक सुनसान कोने में ले जाया। जहां जंगल इतना घना था कि सूरज की रोशनी भी मुश्किल से पहुंचती थी। पानी शांत था लेकिन उसमें एक अजीब सी बेचैनी थी। जलपरी ने इशारा किया और कहा खजाना यहीं इस पानी के नीचे है।

हरिप्रसाद ने उत्साह में कहा तुम इसे मेरे लिए निकाल दो। जलपरी ने जवाब दिया, नहीं, इसे तुम्हें खुद निकालना होगा। हरिप्रसाद ने बिना सोचे पानी में छलांग लगा दी। जैसे ही वह पानी में उतरा, जलपरी की आंखों में एक क्रूर चमक उभरी।

उसने हरिप्रसाद को पीछे से जकड़ लिया और उसका सिर पानी में डुबो दिया। हरिप्रसाद छटपटाया। उसकी सांसे रुकने लगी। उसने पानी में हाथ पैर मारे लेकिन जलपरी की पकड़ लोहे सी थी। धीरे-धीरे उसकी सांसे थम गई। उसका शरीर शांत हो गया और नदी ने उसे अपने आगोश में समेट लिया। कुछ देर बाद जंगल से चार लोग निकले। चेहरों पर कोई भाव नहीं था जैसे यह उनके लिए रोज का काम हो।

उन्होंने हर प्रसाद की लाश को नाव में डाला और जंगल के बीच बने एक पुराने जीर्ण शीर्ण घर की ओर ले गए। वह घर ऐसा था जैसे सालों से कोई इंसान वहां नहीं आया हो। दीवारें टूटी थी, और हवा में सड़ांत की बूं थी। घर के अंदर एक कमरा था जहां मेज पर खून के धब्बे थे।

उन्होंने हर प्रसाद की लाश को मेज पर रखा। एक चाकू की चमक हवा में चमकी। पहले दिल निकाला गया फिर किडनी फिर फेफड़े। हर अंग को सावधानी से अलग किया गया जैसे कोई कसाई मांस काट रहा हो।

खून की धाराएं मेद से नीचे टपक रही थी। अंगों को बर्फ की पेटी में रखा गया जो काले बाजार में लाखों में बिकने वाले थे। हरिप्रसाद की पत्नी सावित्री को जब रात तक उसका इंतजार रहा तो उसका दिल बेचैन हो उठा। वह पुलिस थाने पहुंची और रोते हुए बोली कि हर प्रसाद नदी किनारे मछली पकड़ने गया था और 24 घंटे हो गए वह नहीं लौटा।

थाने में इंस्पेक्टर अमरेंद्र चौधरी बैठा था। वह एक कड़क पुलिस वाला था जिसके चेहरे पर हमेशा एक गंभीरता रहती थी। उसने सावित्री की शिकायत दर्ज की और तुरंत अपनी टीम को बुलाया। अमरेंद्र ने अपनी डायरी खोली जिसमें पिछले एक साल में गायब हुए लोगों की फहरिस्त थी। उसने गौर किया कि ज्यादातर मामले नदी के किनारे से ही थे। कुछ तो गलत था। उसने अपनी टीम से कहा, “हें नदी के आसपास की हर चीज की जांच करनी होगी। अमरेंद्र ने अपनी टीम के साथ नदी किनारे के घरों की तलाशी शुरू की। घंटों की मेहनत के बाद भी कुछ नहीं मिला। हर घर, हर कोना, सब साफ।

Ankit Verma

अंकित वर्मा एक रचनात्मक और जिज्ञासु कंटेंट क्रिएटर हैं। पिछले 3 वर्षों से वे डिजिटल मीडिया से जुड़े हैं और Tophub.in पर बतौर लेखक अपनी खास पहचान बना चुके हैं। लाइफस्टाइल, टेक और एंटरटेनमेंट जैसे विषयों में विशेष रुचि रखते हैं।

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