एक पल के लिए अर्जुन की आँखें झिलमिलाईं, जैसे भीतर कुछ टूटा हो। मगर अगले ही पल उन्होंने नज़र फेर ली मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता।

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पाँच साल बाद भी वही रुतबा, वही गहरी आँखें। बस अब कनपटियों पर हल्की सी सफ़ेदी थी। अर्जुन ने उसे देखा और उसकी आँखों से अहंकार गायब हो गया।

“मीरा…” उसकी आवाज़ भर्रा गई।

“श्री सिंघानिया, लोटस ब्रीज़ इन में आपका स्वागत है।” मीरा ने पूरी ताक़त से अपने दिल को संभालते हुए कहा।

उसी वक्त एक कागज़ी हवाई जहाज़ उड़ा और अर्जुन के जूतों के पास आकर गिरा।

“माँ! देखो मेरा जहाज़!”

कबीर दौड़ता हुआ आया और वहीं रुक गया। उसकी आँखें अर्जुन जैसी थीं। अर्जुन की साँस अटक गई।

“वह… मेरा है?” अर्जुन ने काँपती आवाज़ में पूछा।

मीरा ने शांत स्वर में कहा –
“हाँ। तुम्हारा।”

उस रात अर्जुन सो नहीं पाया। उसने सोचा था कि वह यहाँ सिर्फ़ बिज़नेस डील के लिए आया है। लेकिन उसने अपने बेटे को देखा था। उसकी हँसी, उसकी मासूम आँखें – सब कुछ उसी का हिस्सा था।

सुबह उसने रिसेप्शन पर कबीर को पाया। वह घंटी बजाते हुए कागज़ का हवाई जहाज़ बना रहा था।

“अंकल, इसे यहाँ मोड़ना चाहिए या यहाँ?” कबीर ने मासूमियत से पूछा।

अर्जुन का दिल पिघल गया। उसने पहली बार अपने बेटे के साथ कागज़ का हवाई जहाज़ बनाया। हवाई जहाज़ दीवार से टकराकर गिर पड़ा और कबीर हँसते-हँसते लोटपोट हो गया। अर्जुन के भीतर कुछ टूटकर जुड़ गया।

धीरे-धीरे अर्जुन ने पास आना शुरू किया। वह कबीर के साथ खेलता, स्कूल छोड़ने जाता, उसके ज़ख़्म पर पट्टी बाँधता। मीरा दूर से देखती रहती। उसका दिल गुस्से और राहत के बीच झूलता।

अर्जुन ने माफ़ी नहीं माँगी। उसने बस मौजूद रहना चुना। हर दिन, हर पल – एक पिता की तरह।

एक रात होटल की बिजली चली गई। गलियारे में अँधेरा था। कबीर डरकर दौड़ता हुआ आया। अर्जुन घुटनों के बल बैठ गया और अपनी बाँहें फैला दीं।

“मैं हूँ न… मैं तुम्हें पकड़ लूँगा।”

कबीर सीधे उसकी गोद में कूद पड़ा। मीरा ने वह दृश्य देखा और उसकी आँखों से आँसू बह निकले।

मीरा ने उसे तुरंत माफ़ नहीं किया। लेकिन उसने धीरे-धीरे अपने दिल को खोलना शुरू किया। अर्जुन ने कभी जल्दी नहीं की। उसने बस साबित किया कि अब वह वही आदमी नहीं रहा।

कबीर ने एक दिन अचानक उसे “पापा” कह दिया। अर्जुन चुप हो गया, लेकिन उसकी आँखों में नमी थी। उसने कुछ नहीं कहा, बस उसे गले से लगा लिया।

समुद्र किनारे की एक शाम, मीरा और अर्जुन साथ बैठे थे। कबीर रेत में खेल रहा था। सूरज ढल रहा था, हवा में नमक और इलायची की खुशबू थी।

“मुझे नहीं पता कि मैं तुम्हें पूरी तरह माफ़ कर पाऊँगी या नहीं,” मीरा ने कहा।

अर्जुन ने उसकी ओर देखा – “मैं जानता हूँ। लेकिन मैं बार-बार कोशिश कर सकता हूँ। बिना शर्त, बिना समय माँगे।”

मीरा हल्की सी मुस्कुराई। उसने उसका हाथ थाम लिया।

लहरें किनारे से टकरा रही थीं, जैसे कह रही हों – जीवन हमेशा लौट आता है।

वे तीनों साथ चलते रहे। एक अधूरी कहानी ने आखिरकार नई शुरुआत पा ली थी।

Ankit Verma

अंकित वर्मा एक रचनात्मक और जिज्ञासु कंटेंट क्रिएटर हैं। पिछले 3 वर्षों से वे डिजिटल मीडिया से जुड़े हैं और Tophub.in पर बतौर लेखक अपनी खास पहचान बना चुके हैं। लाइफस्टाइल, टेक और एंटरटेनमेंट जैसे विषयों में विशेष रुचि रखते हैं।

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