उम्मीद की किरण
साल गुजरते गए। अंजलि ने पढ़ाई पूरी की, यूनिवर्सिटी में अव्वल आई। पिता दोषमुक्त होकर वापस आए। माँ के चेहरे पर फिर से मुस्कान लौटी। यह सब श्री शर्मा की वजह से हुआ।
स्नातक दिवस पर, श्री शर्मा अपनी छड़ी के सहारे आए। अंजलि ने गाउन पहन रखा था, चेहरा खुशी से दमक रहा था। श्री शर्मा की आँखों में गर्व और संतोष छलक रहा था।
शाम को, हवेली की शांत बैठक में उन्होंने पूछा –
“अब आगे की क्या योजना है, अंजलि? तुम्हें एक अच्छा युवक मिल जाएगा, तुम घर बसाओ…”
लेकिन अंजलि ने उनका हाथ पकड़ लिया –
“नहीं श्री शर्मा। मैं यहीं रहना चाहती हूँ। आपका ख्याल रखना चाहती हूँ। आपने सिर्फ़ मेरा नहीं, मेरे पूरे परिवार का जीवन बचाया। मैं आपको छोड़कर कभी नहीं जा सकती।”
श्री शर्मा स्तब्ध रह गए। उनकी आँखों में नमी थी। उन्होंने उसकी आँखों में झाँका, और वहाँ सच्चाई और अपनापन साफ़ दिख रहा था।
एक नया रिश्ता
अब अंजलि के लिए श्री शर्मा केवल एक समझौते के पति नहीं थे। वो उसके लिए मार्गदर्शक, संरक्षक, और एक आत्मीय साथी बन चुके थे।
जो शादी मजबूरी में हुई थी, वही अब किस्मत की एक अद्भुत कहानी बन गई थी।
उस रात, जिसने अंजलि को निराशा की गहराइयों में धकेला था… वही रात उसकी नई ज़िंदगी की शुरुआत बन गई।
कभी-कभी, जीवन की सबसे बड़ी मजबूरियाँ ही सबसे खूबसूरत रिश्तों का जन्म देती हैं।