बात उस दिन की है जब सुबह की पहली किरणें धीरे-धीरे शहर को जगाने लगी थी। तारीख थी 7 अगस्त 2025 गुरुवार और घड़ी की सुइयां 10:05 पर ठहर गई थी। शहर में रक्षाबंधन की तैयारियां जोरों पर थी। लेकिन एक घर में जहां आमतौर पर शांति छाई रहती थी आज कुछ अलग ही हलचल थी। उस घर में रहती थी जिले की एसपी मैडम राधिका सिंह। राधिका एक ऐसी पुलिस अधिकारी थी जिनका नाम सुनते ही अपराधियों के पसीने छूट जाते थे।
उस सुबह वह अपने घर के छोटे से स्टडी रूम में बैठी थी। अपने लैपटॉप पर किसी पुराने केस की फाइलें देख रही थी। कमरे में बस लैपटॉप की स्क्रीन की नीली रोशनी और उनकी उंगलियों की हल्की खटखट की आवाज थी। तभी उनके फोन पर एक मैसेज की घंटी बजी। स्क्रीन पर एक अनजान नंबर से आया मैसेज चमक रहा था। मैसेज में लिखा था मैडम रक्षाबंधन के त्यौहार के दिन मार्केट में बहुत भीड़ रहती है। वहां एक हवलदार की ड्यूटी लगी होती है।
लेकिन वह हवलदार आने जाने वाली लड़कियों से बदतमीजी करता है और मार्केट में अवैध वसूली भी करता है। कृपया मदद करें। राधिका ने मैसेज को एक बार फिर दूसरी बार पढ़ा। उनके दिमाग में सवाल कौधने लगे। यह मैसेज किसने भेजा? क्या यह सच है या कोई उन्हें फंसाने की कोशिश कर रहा है? लेकिन एक बात तय थी अगर यह सच था तो इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता था।
राधिका ने फैसला किया कि वह खुद इसकी तह तक जाएंगी लेकिन चुपके से ताकि कोई भनक ना लगे। अगली सुबह राधिका ने अपने कमरे में एक योजना बनाई। वह जानती थी कि अगर वह अपनी वर्दी में मार्केट गई तो हवलदार सतर्क हो जाएगा और सबूत छिपा लेगा। इसलिए उन्होंने एक अलग रास्ता चुना। अलमारी से एक साधारण सलवार कमीज निकाली हल्के नीले रंग की जिसमें ना कोई चमक थी ना कोई भड़कीला डिजाइन।
अपने बालों को एक साधारण चूड़े में बांधा। चेहरे पर कोई मेकअप नहीं किया और एक पुराना थैला लिया जिसमें राखियां भरी थी। वह एक राखी बेचने वाली बनकर मार्केट में जाने वाली थी। घर से निकलते वक्त उन्होंने अपने सर्विस रिवॉल्वर को मेज पर छोड़ दिया और सिर्फ एक छोटा सा फोन अपनी कमर में छिपा लिया।
यह एक जोखिम था, लेकिन सच जानने के लिए यह जरूरी था। मार्केट में कदम रखते ही राधिका के कानों में भीड़ की गूंज सुनाई दी। चारों तरफ लोग राखियां, मिठाइयां और त्यौहार की दूसरी चीजें खरीद रहे थे। दुकानदार अपनी दुकानों को सजाने में व्यस्त थे और हवा में मिठास और उत्साह का मिश्रण तैर रहा था। लेकिन राधिका की नजरें कुछ और ही खोज रही थी। उन्होंने एक छोटी सी जगह चुनी। अपना थैला रखा और राखियां बेचना शुरू कर दिया।