बाहर कुत्तों के भौंकने की आवाज़ें आ-जा रही थीं। आसमान में चाँद बादलों से ढका हुआ था और गाँव की गलियाँ सन्नाटे में डूबी हुई थीं।

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रात का दूसरा पहर था। बाहर कुत्तों के भौंकने की आवाज़ें आ-जा रही थीं। आसमान में चाँद बादलों से ढका हुआ था और गाँव की गलियाँ सन्नाटे में डूबी हुई थीं। अंदर कमरे में, गोविंद बाबू अपनी नींद से हड़बड़ाकर उठे। उम्र ने शरीर को बहुत कमजोर बना दिया था, आँखों पर चश्मा चढ़ा था, और हाथ हर वक्त काँपते रहते थे।

उन्होंने जैसे ही करवट ली, उन्हें अचानक एक गीली ठंडक महसूस हुई। दिल धक से बैठ गया।
“हे भगवान… फिर वही हो गया,” वे बड़बड़ाते हुए चादर पर हाथ फेरने लगे।

उनकी आँखों में शर्म और डर दोनों झलक रहे थे। अभी कल ही तो बहू रीमा ने सख्त लहजे में कहा था—
“अगर ससुर जी ने फिर बिस्तर गीला किया, तो मैं हाथ भी नहीं लगाऊँगी।”

उन शब्दों की गूँज आज भी उनके कानों में तीर की तरह चुभ रही थी।

गोविंद बाबू चुपचाप उठे, काँपते हाथों से भीगी चादर समेटने लगे। उम्र और कमजोरी ने शरीर को बेबस कर दिया था, लेकिन मन अब भी आत्मसम्मान से भरा हुआ था। वह किसी पर बोझ नहीं बनना चाहते थे।

चादर समेटते समय उनका गला सूख रहा था। दो दिन से बहू ने उन्हें जानबूझकर पानी भी कम दिया था—”कम पियो, तो कम गड़बड़ होगी” कहकर। लेकिन प्यास और भूख किसी नियम से नहीं मानते। उनकी हालत देखकर लगता था जैसे भीतर से वो धीरे-धीरे टूट रहे हैं।

तभी पीछे से धीमी सी आवाज़ आई—
“बाबा… आप ये क्या कर रहे हैं?”

गोविंद बाबू ने घबराकर पीछे देखा। दरवाज़े पर बेटा अरुण और बहू रीमा खड़े थे। हाथ में मोबाइल की रोशनी थी, दोनों शायद आवाज़ सुनकर जाग गए थे।

गोविंद बाबू घबराकर बोले—
“बिटिया… चिंता मत करना। अबकी मैंने खुद साफ कर लिया है। तुम्हें हाथ नहीं लगाना पड़ेगा।”

लेकिन रीमा का चेहरा सिकुड़ गया। उसने तेज़ आवाज़ में कहा—
“बस! अब रोज़-रोज़ ये तमाशा नहीं झेला जाता। पूरे घर में बदबू फैल जाती है। अरुण, इन्हें किसी ओल्ड ऐज होम भेज दो, वरना मैं मायके चली जाऊँगी!”

Ankit Verma

अंकित वर्मा एक रचनात्मक और जिज्ञासु कंटेंट क्रिएटर हैं। पिछले 3 वर्षों से वे डिजिटल मीडिया से जुड़े हैं और Tophub.in पर बतौर लेखक अपनी खास पहचान बना चुके हैं। लाइफस्टाइल, टेक और एंटरटेनमेंट जैसे विषयों में विशेष रुचि रखते हैं।

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