“हिंदी आसान भाषा नहीं है मेम। आपके इंग्लिश मीडियम स्कूल में शुद्ध हिंदी बोलने वाला शायद ही कोई हो, तो बच्ची कैसे सीखे?”
रेखा मेम ने झुंझलाकर कंप्यूटर की कॉपी उठा दी—
“ये देखिए! आजकल बच्चे मोबाइल चला लेते हैं, लैपटॉप पर गेम खेल लेते हैं, पर आपकी बेटी कंप्यूटर में फेल है।”
अजय ने कॉपी पलटते हुए कहा—
“लेकिन मेम, ये उम्र खेल के मैदान की है, स्क्रीन की नहीं। क्या बचपन में कंप्यूटर फेल होना कोई बड़ी हार है?”
रेखा मेम की भौंहें तन गईं। उन्होंने कापियाँ समेटते हुए कहा—
“साइंस का रिज़ल्ट तो छोड़ ही दीजिए। जानते हैं, आइंस्टीन भी बचपन में कमजोर थे।”
अब अजय चुप रहा। तभी रेखा मेम ने तीखे स्वर में कहा—
“और क्लासरूम में ये बहुत शोर मचाती है, बार-बार हँसती है, इधर-उधर घूमती है।”
अजय ने गहरी सांस लेकर कहा—
“मेम, एक बच्चे का हँसना और खेलना ही तो उसकी सबसे बड़ी उपलब्धि है।”
फिर अजय ने गंभीर आवाज़ में पूछा—
“लेकिन मेम, आपने गणित की कॉपी नहीं दिखाई।”
रेखा मेम ने आँखें चुराईं, “वो ज़रूरी नहीं है।”
अजय ने ज़िद्द की, “नहीं, जब सब दिखाया तो ये भी दिखाइए।”
अनमने मन से रेखा मेम ने गणित की कॉपी आगे बढ़ाई। अजय ने जैसे ही देखा, उसके चेहरे पर संतोष की चमक आ गई—100% अंक!
अजय ने मुस्कुराते हुए पूछा—
“मेम, अंग्रेज़ी किसने पढ़ाई?”
“मैंने।”
“हिंदी?”
“मैंने।”
“कंप्यूटर?”
“वो भी मैंने।”
“और गणित?”
रेखा मेम चुप थीं। अजय ने खुद ही कहा—
“वो मैंने पढ़ाया है।”
रेखा मेम का चेहरा लाल हो गया। अजय ने अन्वी के सिर पर हाथ रखते हुए कहा—
“तो अब आप ही बताइए, अच्छा टीचर कौन है?”
क्लास में बैठे बाकी पेरेंट्स हंस पड़े। अन्वी की आँखों में चमक आ गई।
अजय ने जाते-जाते रेखा मेम से कहा—
“मेम, बच्ची है। शरारत करेगी, हँसेगी, गिरेगी भी। लेकिन सीखना तभी संभव है जब हम उसे डांट से ज्यादा हौसला दें। अगली बार शिकायत नहीं, प्रोत्साहन की उम्मीद करूंगा।”
रेखा मेम अवाक रह गईं।
अजय और अन्वी क्लासरूम से बाहर निकले तो दोनों के चेहरे पर एक-सा गर्व था—मानो कोई बड़ी जीत हासिल कर ली हो।