साँप को मारकर नेवला बाहर आया। उसके मुँह पर खून के निशान लगे हुए थे। उसी समय हरनाम लकड़ियाँ काटते हुए अंदर जाने ही वाला था। उसने देखा कि नेवला खून से सना बाहर निकल रहा है। हरनाम का दिल दहल गया। उसके दिमाग में एक ही खयाल आया—“हे भगवान, ये मेरे बच्चे को खा गया! मेरे लाल को…” उसका खून खौल उठा। ग़ुस्से और डर में उसने पास रखी कुल्हाड़ी उठाई और बिना सोचे-समझे नेवले पर चला दी। एक ही वार में बेचारा नेवला दो टुकड़ों में बँट गया। वो मासूम जानवर जिसने अभी-अभी बच्चे की जान बचाई थी, उसी का मालिक उसकी मौत का कारण बन गया।
नेवले को मारने के बाद हरनाम पागलों की तरह अंदर दौड़ा। उसका दिल काँप रहा था, डर से साँस अटक रही थी। “कहीं मेरा बेटा…” सोचते हुए उसने बच्चे की ओर नज़र डाली तो उसके पैरों तले ज़मीन खिसक गई। बच्चा चारपाई पर सुरक्षित सो रहा था। उसकी एक भी खरोंच नहीं आई थी। लेकिन ज़मीन पर जो नज़ारा था, उसने हरनाम को पत्थर कर दिया। साँप के दो-तीन टुकड़े पड़े थे। चारों तरफ़ खून फैला था। साफ़ था कि नेवले ने पूरी जान की बाज़ी लगाकर बच्चे को बचाया था।
हरनाम वहीं ज़मीन पर बैठ गया। कुल्हाड़ी उसके हाथ से छूट गई। उसकी आँखों से आँसू की धार बह निकली। “अरे मूर्ख! तूने क्या कर डाला? जिसने मेरी मदद की, मेरे बच्चे को साँप से बचाया, मैंनें उसी का गला काट दिया। हे भगवान, ये कैसा न्याय किया मैंने?” उसका सीना पछतावे से भर गया। बच्चा तो सुरक्षित था लेकिन उस मासूम जानवर की जान अब लौटने वाली नहीं थी।
उस दिन से हरनाम की ज़िंदगी बदल गई। वो अक्सर गाँव में बच्चों को यही किस्सा सुनाता और कहता—“बेटा, बिना सोचे-समझे कभी किसी पर इल्ज़ाम मत लगाना। ग़लतफ़हमी इंसान से बहुत बड़ा अपराध करवा देती है। मैंने अपनी आँखों से देखा है—जल्दबाज़ी का फल हमेशा पछतावा ही होता है।”
गाँव के लोग कहते—“नेवले की कुर्बानी बेकार नहीं गई। उसने बच्चे की जान भी बचाई और हमें सबक भी दे गया।” हरनाम अपने बच्चे को सीने से लगाकर हर रोज़ यही सोचता—“अगर नेवला न होता तो आज मेरा लाल जिंदा न होता। और अगर मैंने जल्दबाज़ी न की होती तो वो भी मेरे पास होता। ग़लतफ़हमी ने मुझे सबसे बड़ा गुनहगार बना दिया।” उसकी आँखें नम हो जातीं और दिल से आवाज़ निकलती—“सच्चाई जाने बिना कभी फ़ैसला मत लो, वरना पछताना ही पड़ेगा।”