मेरे हाथ से उसका हाथ छूट गया और काले साए उसे अपनी तरफ़ खींच ले गए। दरवाज़ा जोर से बंद हो गया और मैं वहीं खड़ा रह गया।
सुबह वह बिस्तर पर थी, जैसे कुछ हुआ ही न हो। लेकिन उसका चेहरा बेहद पीला था और उसकी आँखों के नीचे गहरे काले घेरे थे। मैंने उससे पूछा कि वह कहाँ जाती है, तो उसने धीमी आवाज़ में कहा, “वहाँ… जहाँ से मैं आई थी।”
उसकी यह बात सुनकर मेरा खून जम गया। मैं चिल्लाया, “क्या मतलब? तुम मेरी पत्नी हो, मेरी दुनिया की हो!” लेकिन वह चुप रही। उसकी मुस्कान में अब डर भी शामिल था।
कुछ दिनों बाद मैंने ठान लिया कि इस रहस्य को जानकर रहूँगा। उस रात जब उसने लाल गाउन पहना और अलमारी का दरवाज़ा खुला, तो मैं उसके पीछे-पीछे अंदर चला गया।
अंदर कोई सामान्य रास्ता नहीं था। वहाँ एक अजीब सा अँधेरा शहर फैला हुआ था। टूटी-फूटी इमारतें, हवा में गूँजती फुसफुसाहटें और लाल गाउन पहनी सैकड़ों औरतें खड़ी थीं। उनकी आँखें खाली थीं और सब मुझे घूर रही थीं।
उनमें से एक औरत मेरे बिल्कुल पास आकर बोली, “अब तुम भी हमारे जैसे हो।”
मैं डर से काँप उठा और रिया का हाथ कसकर पकड़ लिया। “मैं तुम्हें छोड़ूँगा नहीं,” मैंने कहा।
लेकिन उसने धीरे से मेरा हाथ छुड़ा दिया। उसकी आँखों में आँसू थे। “अगर तुम सच में मुझसे प्यार करते हो, तो वापस चले जाओ। यह जगह सिर्फ़ मेरा हिस्सा है… तुम्हारा नहीं।”
अगले ही पल सब कुछ धुंधला हो गया और मैं अपने कमरे में जागा। सुबह की धूप खिड़की से अंदर आ रही थी। रिया कहीं नहीं थी। बिस्तर खाली था, और अलमारी में सिर्फ़ एक चीज़ टंगी थी—वही लाल गाउन।
उस दिन से अब तक हर रात ठीक बारह बजे अलमारी चरमराती है। कभी-कभी मुझे लगता है कि अगर मैं उसका दरवाज़ा खोल दूँ तो शायद फिर कभी वापस न आ सकूँ। लेकिन उसकी खुशबू, उसकी मौजूदगी… सब अब भी उस गाउन में कैद है।












