मेरे 50 वर्षीय पति ने बेटी की सबसे अच्छी दोस्त से शादी करने के लिए तलाक माँगा लेकिन अंत ने सबको चौंका दिया

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राजीव और अंकिता की शादी हो गई। उसने सोचा कि उसने जीत हासिल कर ली है। मैंने भी उसे बधाई दी और उसने दिल वाला इमोजी भेजकर जवाब दिया। लेकिन मेरे पास चुप्पी से बड़ा हथियार था। शादी की रात मैंने अंकिता को फ़ोन किया। उसकी आवाज़ में उत्साह था, शायद वह गोवा के किसी होटल में थी। मैंने बस एक वाक्य कहा—“क्या तुम्हें पता है कि वह अब अपनी बेटी के साथ क्यों नहीं रहता?” फिर फ़ोन काट दिया।

उस रात अंकिता सो नहीं सकी। उसने अपने बगल में सोए राजीव को देखा—झुर्रियों वाला चेहरा, सफ़ेद बाल और खर्राटों की आवाज़। उसे समझ आने लगा कि यह वही आदमी है जो इंस्टाग्राम को नहीं समझता, नए गाने नहीं सुनता और हर वक़्त आलोचना करता है। वही आदमी जो कभी उसकी दोस्त का पिता हुआ करता था। उसका सपना धीरे-धीरे टूटने लगा।

कुछ ही महीनों में अंकिता ने घर छोड़ दिया और अपनी ही उम्र के लड़के से शादी कर ली। राजीव अकेला रह गया। बांद्रा का छोटा सा अपार्टमेंट अब धूल और सन्नाटे से भरा था। दोस्त उससे दूर हो गए, बेटी ने उससे रिश्ता तोड़ लिया और लोग उसे भ्रमित औरतबाज़ कहने लगे। वह जुहू बीच पर टहलता और युवा जोड़ों को देखता, पछतावे से भरा हुआ।

मैंने इस धोखे को अपनी ज़िंदगी की परिभाषा नहीं बनने दिया। पुणे चली गई और वहाँ एक छोटा-सा कैफ़े खोला। उसका नाम रखा “शांति कैफ़े।” वहाँ किताबें रखीं, पौधे सजाए और ग्राहकों को गरम मसाला चाय और फ़िल्टर कॉफ़ी परोसी। धीरे-धीरे यह कैफ़े उन लोगों का अड्डा बन गया जो जीवन में टूटी हुई कड़ियाँ जोड़ना चाहते थे। मैंने योग शुरू किया, किताबें पढ़ीं और अपने भीतर की खोई हुई ताक़त को वापस पाया।

एक दिन कैफ़े में एक नए ग्राहक आए। उनका नाम था अरुण खन्ना, दिल्ली विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त प्रोफ़ेसर। वे विधुर थे, शांत और समझदार। उन्होंने किताब पढ़ते हुए धीरे से कहा, “यह जगह सच में शांति देती है।” धीरे-धीरे हमारी बातें बढ़ीं—साहित्य, संगीत और ज़िंदगी की तकलीफ़ों पर। एक दिन उन्होंने मेरी आँखों में देखते हुए कहा, “तुमने बहुत सहा है। लेकिन मुझे लगता है कि तुम फिर से प्यार पाने की हक़दार हो।” उनके शब्दों ने मेरे दिल की जमी बर्फ़ को पिघला दिया।

राजीव अब भी अकेला है, बूढ़ा और पछतावे में डूबा हुआ। मैं अब अपनी बेटी के साथ फिर से जुड़ चुकी हूँ और अरुण जैसे साथी के साथ ज़िंदगी का आनंद ले रही हूँ। कैफ़े अब कई लोगों के लिए उम्मीद की जगह बन गया है।

एक बार राजीव मेरे कैफ़े के बाहर आया। उसने मुझे ग्राहकों के साथ हँसते और अरुण के साथ किताबें सजाते देखा। उसकी आँखों में पछतावा था, लेकिन उसने अंदर आने की हिम्मत नहीं की।

मैं अब गुस्से में नहीं हूँ। समय ने मुझे माफ़ करना और आगे बढ़ना दोनों सिखा दिया है। राजीव ने अपने भ्रम के पीछे सब कुछ खो दिया, और मैंने खुद को पा लिया—आजाद, मज़बूत और आत्मनिर्भर। आज मुझे समझ आता है कि रिश्ता भरोसे पर टिकता है, और जब भरोसा टूट जाए तो सबसे बड़ी जीत खुद को फिर से पाने में होती है।

Ankit Verma

अंकित वर्मा एक रचनात्मक और जिज्ञासु कंटेंट क्रिएटर हैं। पिछले 3 वर्षों से वे डिजिटल मीडिया से जुड़े हैं और Tophub.in पर बतौर लेखक अपनी खास पहचान बना चुके हैं। लाइफस्टाइल, टेक और एंटरटेनमेंट जैसे विषयों में विशेष रुचि रखते हैं।

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