बगल में गुलाब जामुन शरबत में डूबे-डूबे चमक रहे थे। और चूल्हे पर ताज़ा मटर पनीर की सब्ज़ी पक रही थी

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तभी बाहर से पापा की भारी आवाज़ गूँजी। वो गुस्से में आकर बोले—
“बिटु! अपनी माँ से ऐसे बात करने की हिम्मत कैसे हुई? ये सब बड़े-बुजुर्गों की रस्में हैं। तुम्हें समझ नहीं आएगा।”

बिटु की आँखें भींग गईं। लेकिन उसकी आवाज़ काँपती हुई भी सख्त थी—
“नहीं पापा! मुझे सब समझ आता है। जब दादाजी जिंदा थे, आपने कभी उनकी असली चाहत पूरी नहीं की। उनकी आँखें पनीर की सब्ज़ी देखकर चमक उठती थीं, लेकिन उन्हें हमेशा बासी और बचा हुआ खाना मिला। आज उनकी मौत के बाद आप थालियाँ सजाकर उन्हें खिला रहे हो? ये दिखावा किसके लिए?”

कमरे में गहरा सन्नाटा छा गया।

माँ के हाथ से चम्मच गिर गई। फर्श पर आवाज़ गूँजी, मानो सच्चाई का बोझ कमरे में फैल गया हो।

बिटु का गला भर आया। उसकी आवाज़ अब मासूमियत से ज़्यादा तड़प बन गई थी—
“पापा… अगर मैं भी कल को आपके साथ यही करूँ—जब आप जिंदा होंगे तब आपकी इच्छा को नज़रअंदाज़ कर दूँ, और जब आप नहीं रहेंगे तब दिखावे में सब करूँ—तो आपको कैसा लगेगा?”

माँ की आँखों से आँसू ढलक पड़े। उन्हें वो रातें याद आ गईं जब दादाजी अकेले बैठकर सूखी रोटी तोड़ते थे। जब उनके दाँतों से कड़क रोटी नहीं टूटती थी, और वो धीरे-धीरे चबाते हुए आह भरते थे।
लेकिन तब किसी ने ध्यान नहीं दिया।

अब बेटे के शब्दों ने उनकी आत्मा को झकझोर दिया।

पापा भी चुप हो गए। उनकी आँखें छत पर टिक गईं, जैसे बीते सालों की तस्वीरें एक-एक करके सामने आ रही हों।

बिटु ने काँपती आवाज़ में फिर कहा—
“दादाजी का क्या कसूर था? वो सिर्फ इतना चाहते थे कि घर में उनकी पसंद का खाना बने। पर उन्हें कभी उनकी खुशबू से ज़्यादा नसीब नहीं हुआ। और आज… आज आप उन्हें ‘आत्मा की शांति’ के नाम पर दावत खिला रहे हो? जिंदा इंसान को तड़पाना और मरने के बाद सजावटी थालियाँ रखना… क्या यही सही है?”

माँ ने बेटे को गले से लगा लिया। आँसू पोंछते हुए बोली—
“बिटु… तू सही कह रहा है। हमने शायद अपने ही पिता के साथ अन्याय किया। हमें उनके जीते-जी उनकी पसंद पूरी करनी चाहिए थी, न कि आज ये पाखंड करना।”

पापा का चेहरा पत्थर-सा हो गया। लेकिन अंदर का अपराधबोध उनकी आँखों से साफ झलक रहा था। उन्होंने काँपती आवाज़ में कहा—
“आज से वादा करते हैं बिटु, हम किसी भी अपने को भूखा नहीं रखेंगे, किसी की छोटी-सी खुशी को भी अनदेखा नहीं करेंगे। काश, ये समझ हमें पहले आ जाती…”

पूरा घर खामोश था। सिर्फ माँ के सिसकते आँसू और पापा की टूटी आवाज़ गूँज रही थी।
और बीच में खड़ा बिटु—अपनी मासूम सच्चाई के साथ, सबसे बड़ा आईना बन गया था—जिसमें उसके माँ-बाप ने अपना असली चेहरा देख लिया।

Ankit Verma

अंकित वर्मा एक रचनात्मक और जिज्ञासु कंटेंट क्रिएटर हैं। पिछले 3 वर्षों से वे डिजिटल मीडिया से जुड़े हैं और Tophub.in पर बतौर लेखक अपनी खास पहचान बना चुके हैं। लाइफस्टाइल, टेक और एंटरटेनमेंट जैसे विषयों में विशेष रुचि रखते हैं।

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